‘दार्जीलिंग’ शब्द तिब्बती भाषा के दो शब्द ‘दोर्जे‘ और ‘लिंग‘ से मिलकर बना है. ‘दोर्जे‘ का अर्थ होता है ‘ओला‘ या ‘उपल‘ और ‘लिंग‘ का अर्थ होता है ‘स्थान‘| इस तरह दार्जीलिंग का शाब्दिक अर्थ हुआ ‘उपलवृष्टि वाली जगह‘ | अंग्रेजो ने इस हिल स्टेशन को अपने मौज-मस्ती और सैरगाह के तौर पर विकसित किया गया था | हिमालय पर्वत श्रृंखला की गोद में बसा दार्जीलिंग वास्तव में स्वर्ग है। दार्जीलिंग ने केवल भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में अपनी पहचान शानदार सुंदर हिल स्टेशन के रूप में बनाया | दार्जीलिंग पहाड़ी ढलानों पर उगाई जाने वाली चाय और विभिन्न गुणवत्ता वाले चाय का बड़े पैमाने पर निर्यात के लिए प्रसिद्ध है |
पहाडों की चोटी पर विराजमान दार्जीलिंग सैलानियों और सैर-सपाटे के शौक़ीन को हमेशा अपनी ओर आकर्षित करता रहा है | यह शिवालिक हिल्स में लोवर हिमालय में अवस्थित है | यहां की औसत ऊंचाई 2,134 मीटर (6,982 फुट) है |
दार्जीलिंग में आप अल्पाइन, साल व ओक के पेड़ों से लैश समशीतोष्ण जंगलों को देख सकते हैं। मौसम में परिवर्तन के बावजूद दार्जीलिंग के जंगल हरे—भरे हैं । शहर में कुछ प्राकृतिक पार्क भी हैं। इनमें से पद्मजा नायडू हिमालियन जूलॉजिकल पार्क और लॉयड बॉटनिकल गार्डन प्रमुख है । शाम के समय में आपको इन जगहों पर बड़ी संख्या में प्रकृति प्रेमी और फोटोग्राफर देखने को मिल जाएंगे। दार्जीलिंग कई किस्म के आर्किड के लिए भी जाना जाता है । इस क्षेत्र में पाए जाने वाले कुछ सामान्य जानवारों में एक सिंघ वाले गेंडे, हाथी, रॉयल बंगाल टाइगर, तेंदुआ और लाल पांडा प्रमुख है। दार्जिलिंग में ढेरों सुंदर प्रवासी पक्षियों को उड़ते हुए भी देख सकते हैं ।
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पद्मजा नायडू हिमालियन जूलॉजिकल पार्क मुख्य गेट |
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पद्मजा नायडू हिमालियन जूलॉजिकल पार्क में लाल पांडा |
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पद्मजा नायडू हिमालियन जूलॉजिकल पार्क में याक |
दार्जीलिंग की खोज आंग्ल-नेपाल युद्ध के दौरान ब्रिटिश सैनिक ने की थी, जब वो टुकड़ी सिक्किम जाने के लिए छोटा रास्ता तलाश रही थी। सिक्किम तक आसान पहुंच के कारण दार्जीलिंग ब्रिटिशों के लिए रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण था। इसके अलावा यह स्थान प्राकृतिक रूप से भी काफी संपन्न था। यहां का ठण्डा मौसम और बर्फबारी के मुफीद थे अंग्रेज। इस कारण अंग्रेज लोग यहां धीरे-धीरे बसने लगे।
प्रारंभ में दार्जीलिंग सिक्किम का एक भाग था। बाद में भूटान ने इस पर कब्जा कर लिया। लेकिन कुछ समय बाद सिक्किम ने इस पर पुन: कब्जा कर लिया। परंतु 18वीं शताब्दी में पुन: इसे नेपाल के हाथों गवां दिया। किन्तु नेपाल भी इस पर ज्यादा समय तक अधिकार नहीं रख पाया। 1817 ई. में हुए आंग्ल-नेपाल युद्ध में नेपाल की हार के बाद नेपाल पर ईस्ट इंडिया कंपनी अधिकार हो गया ।
अपने रणनीतिक महत्व तथा तत्कालीन राजनीतिक स्थिति के कारण एक लंबे अर्से तक यहाँ राजनीतिक अस्थिरता बनी रही, ये अस्थिरता तभी समाप्त हुई जब अफगानिस्तान का अमीर अंगेजों से हुए युद्ध में हार गया। इसके बाद से इस पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया । वर्तमान में दार्जीलिंग पश्चिम बंगाल का एक भाग है। यह त्रिभुजाकर शहर 3149 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इसका उत्तरी भाग नेपाल और सिक्किम से सटा हुआ है। इसके अलावा देश-विदेश के पर्यटक भी यहाँ आते हैं | जो आंकड़ा मुझे याद आ रहा है, लगभग 5 लाख पर्यटक हर वर्ष दार्जिलिंग आते हैं तथा जिसमें विदेशी पर्यटकों की संख्या लगभग 50,000 होती है |
दार्जीलिंग का मौसम
यहां सर्दियों में, जो अक्टूबर से मार्च तक होता है अत्यधिक ठण्डी पड़ती है। यहां गर्मी का मौसम अप्रैल से जून तक रहता है। इस समय यहाँ हल्का ठण्डापन होता है। यहां बारिश जून से सितम्बर तक होती है। गर्मियों में यहां पर्यटकों की भीड़ लगी रहती हैं, गर्मियों से राहत पाने के लिये पहाड़ों का रूख करते हैं और पश्चिम बंगाल, बिहार, उडीसा के लोगों की पहली पसन्द होती है दार्जलिंग । गर्मी के मौसम में सामान्यतः यहाँ का तापमान 10° – 14° डिग्री सेल्सियस रहता है | जी हाँ ठीक सुना आपने मैं गर्मीयों की ही बात कर रहा हूँ, सर्दियों में तो यहां कड़ाके की ठंड पड़ती है और तापमान लगभग 2° – 3° डिग्री सेल्सियस हो जाता है । वैसे यहाँ का न्यूतम तापमान जनवरी में –2° – 4° भी हो जाता है, कभी-कभी | यहाँ सैर-सपाटे का सबसे बेहतर समय अप्रैल से जून और फिर सितम्बर-अक्टूबर का है | वैसे तो यहाँ कभी भी आया जा सकता है, पर बारिश में यहाँ पर्यटकों की भीड़ बिल्कुल कम हो जाती हैं | सर्दियों में भी लोग क्रिसमस और नये साल की छुट्टियों में पहुँच जाते हैं, इस वजह से दिसम्बर मध्य से लेकर जनवरी के अंत तक नये साल का जश्न मनाने वालों जमावड़ा लगा रहता हैं | इस समय भी होटल महंगे हो जाते हैं |
गर्मियों में दार्जीलिंग घूमने का अपना ही मजा है, सुहाना और ठंडक लिये ये जगह आपको गर्मियों की तपिस से राहत देगा | गर्मियों में भी हलके गर्म कपडे लेकर जायें, खासकर बच्चों के लिये गर्म कपड़ों के साथ गर्म टोपी या मफलर लेना ना भूले | वरना सुबह-सुबह ठंड के कारण परेशानी का सामना करना पड़ सकता हैं | लेकिन गर्मियों में यहाँ होटल काफी महंगे होते हैं | बेहतर होगा आप जाने के दो महीने पहले ही कमरे बुक कर लें | आप चाहें तो वेस्ट बंगाल टूरिस्म डेवलपमेन्ट कार्पोरेशन की उपलब्ध होटल भी बुक कर सकते हैं, जानकारी के लिये यहाँ क्लिक करें – वेस्ट बंगालटूरिस्म डेवलपमेन्ट कार्पोरेशन
दार्जीलिंग और आसपास के पर्यटन स्थल
दार्जीलिंग का प्रमुख आकर्षण टाइगर हिल है, यहाँ से सुबह उगते हुए सूर्य को देखने का आनंद ही कुछ और है | टाइगर हिल से कंजनजंगा तथा माउंट एवरेस्ट, इन दोनों ही चाटियों को देखा जा सकता है | इन दोनों चोटियों की ऊंचाई में मात्र 827 फीट का अंतर है | वैसे कंचनजंगा विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है | टाइगर हिल से कंचनजंगा की चोटियों का नज़ारे का सबसे बेहतर समय अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर का है | इस समय आसमान बिल्कुल साफ़ होता है और आप कंचनजंगा की लहराती-बलखाती चोटियों की सोने सी चमकते रूप का दर्शन कर सकते हैं, जो किसी को भी अपने मोहपाश में जकड ले |
पहले कंजनजंघा को ही विश्व की सबसे ऊंची चोटी माना जाता था, लेकिन 1856 ई. में सर्वेक्षण के बाद यह जानकारी मिल सकी कि संसार की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा नहीं, बल्कि नेपाल स्थित माउंट एवरेस्ट है | कंचनजंघा को सबसे रोमांटिक पर्वत माना जाता है | कंजनजंघा की सुंदरता के कारण ही यह पर्यटकों के मन में रच-बस गया है |
दार्जीलिंग में पर्यटकों के लिए टाइगर हिल के अतिरिक्त काफी कुछ है। इनमें से हैप्पी वैली टी एस्टेट, लॉयड बॉटनिकल गार्डन, दार्जीलिंग हिमालियन रेलवे (टॉय ट्रेन), बतासिया लूप व युद्ध स्मारक, केबल कार, भूटिया बस्टी गोंपा, मिरिक, दार्जिलिंग उड़नखटोला (Darjleeing Roapway), जापानी बौद्ध मंदिर, शांति स्तूप, समतेन चोलिंग मोनेस्ट्री, सिंगालीला राष्ट्रीय उद्यान, महाकाल मन्दिर, संचल झील एवम वन्यजीव अभयारण्य और हिमालियन माउंटेनीरिंग इंस्टीट्यूट और म्यूजियम प्रमुख है। अगर आपको घुमक्कड़ी पसन्द है तो फिर जनाब आपके लिये भी यहाँ ब्रिटिशकालीन स्थानों की कोई कमी नहीं, आप “दार्जिलिंग हेरिटेज वाक” का आनन्द भी ले सकते हैं | दार्जीलिंग हेरिटेज वाक के लिये आपको सुबह से लंच तक का समय देना होगा, चाहें तो इसे मेरी तरह सुबह की सैर में भी पुरा किया जा सकता है | दार्जीलिंग हेरिटेज वाक की जानकारी के लिये आलेख पहले ही उपलब्ध है, ब्लॉग पर इसे पढ़ सकते हैं | कृप्या यहाँ जाये- दार्जीलिंग हेरिटेज वाक
दार्जीलिंग कैसे पहुंचें
दार्जीलिंग एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल होने के कारण यहां पहुंचना कोई मुश्किल काम नहीं है। ये हवाई, रेलमार्ग और सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है |
हवाई मार्ग: दार्जीलिंग देश के अनके स्थानों से हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है. बागडोगरा (सिलीगुड़ी) यहां का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है, जो कि यहां से 90 किलोमीटर की दूरी पर है | यहां से दार्जीलिंग करीब 2½ से 3घण्टे में पहुंचा जा सकता है |
रेलमार्ग: दार्जीलिंग पहुंचने की लिये सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन न्यू जलपाइगुड़ी है |यहाँ से कुर्सियांग, रोहिणी होते हुये दार्जीलिंग लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, वहीँ मिरिक होते हुये लगभग 110 किलोमीटर की दूरी पर है | कोलकाता से लगभग दर्जन भर सीधे ट्रेन न्यू जलपाइगुड़ी जाती है, जो आपको 10 से 13 घंटे में न्यू जलपाइगुड़ी पहुँचा देगी | दिल्ली से भी गुवाहाटी राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन से २१ घंटे में न्यू जलपाइगुड़ी पहुँचा जा सकता है, जबकि अन्य ट्रेनें 25 से 34घंटे में पहुंचाती हैं |
न्यू जलपाइगुड़ी से 4 pax, 8 pax और 24 pax के लिये गाड़ी प्रीपेड बूथ पर उपलब्ध है, जो कि स्टेशन के बाहर ही बना है | प्रीपेड बूथ के अतिरिक्त कहीं और से गाड़ी लेते वक्त संभल कर और मोल-तोल कर ही गाड़ी लें, यहाँ दलालों का बोलबाला है | स्टेशन स्टैंड से बाहर निकल भी उचित भाड़े पर गाड़ी की जा सकती है | शायद सिलीगुड़ी से बस सेवा भी है, लेकिन बहुत ही कम ट्रिप होती है | इसके बारे में मुझे कुछ विशेष जानकारी नहीं मिल पाई | हाँ, चाहें तो सिलीगुड़ी से शेयर टेक्सी से सफर कर सकते हैं, लेकिन अगर आगे सीट ना मिली तो फिर फजीहत ही समझिये | रास्ते काफी घुमुदार और शार्प टर्न लिये हैं सो परेशानी हो सकती है |
4 पैसेंजेर के लिये छोटी गाड़ी लगभग – Rs. 2,500/-
8 पैसेंजेर के लिये सुमो, बोलेरो गाड़ी लगभग- Rs. 3000/-
सड़क मार्ग: दार्जीलिंग सिलीगुड़ी से सड़क मार्ग NH 55 द्वारा और गंगटोक से NH 35A से जुड़ा हुआ है | दार्जीलिंग सड़क मार्ग से सिलीगुड़ी से 2½ से 3 घण्टे की दूरी पर स्थित है | कोलकाता से सिलीगुड़ी के लिए सरकारी और निजी बसें चलती है |
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दार्जीलिंग के बारे में विस्तृत जानकारी पढ़कर बहुत अच्छा लगा….दार्जीलिंग मेरा पसंदीदा हिल स्टेशन है
सबसे पहले तो मेरे यात्रा वृतांत को पढ़ने के लिये धन्यवाद प्रतिक जी | यात्रा वृतांत में दी जानकारी पढकर आपको अच्छा लगा, ये मेरे लिये बहुत ही खुशी की बात है | मैं बस किसी तरह तोड़-जोड़ कर लिख लेता हूँ | आपलोगों के कमेन्ट से उत्साहबर्धन होता है |
Wah you are good write brother. keep writing and share with you. Darjeeling tour is very much informative. I am saving it for future.
आपका बहुत – बहुत धन्यवाद !
आपने अपना नाम नहीं दिया, नाम होता तो पहचानने में सहूलियत होती |
वाह बहुत अच्छा विवरण अंशुमन चक्रपाणि जी। आप ऐसे ही लिखते रहे और दूसरे को कुछ अच्छा पढ़ने के लिए देते रहे। दार्जिंग के बारे में संपूर्ण विवरण, उसके नाम का अर्थ, कैसे जाएं, कहां रहे सब कुछ। कुल मिलाकर शानदार प्रस्तुति।
बस लिखते रहिए कमेंट का मोह मत करिए, पहले हम भी जब लिखना आरंभ किए तो बहुत कमेंट आते थे फिर एक-एक कमेंट के लिए तरसने लगे फिर लिखना ही छोड़ दिए पर दो लोग प्रतीक भाई और रितेश भाई के कहने पर फिर से लिखने लगे, अब न तो कमेंट का मोह, न लाइक की अभिलाषा, बस लिख रहे हैं और किसी दिन समय निकालकर उसे पढ़कर अपने ही यात्रा का याद कर रहे हैं।
धन्यवाद अभयानंद भाई आपकी बहुमूल्य मंतव्य के लिए | आपको पसन्द आया, मतलब लिखना सार्थक रहा | दिल से शुक्रिया |
जी बिल्कुल सही कहा अभयानंद भाई आपने | पर फिर भी प्रतीक भाई और आप जैसे कुछ मित्र भी हैं जो मुर्दे को भी ट्रेक पर भेज दें | मैंने भी अपनी यात्रा डायरी की सोच लेकर ही लिखना शुरू किया और ये ब्लॉग का रूप दे दिया | क्योंकि कई चीजें कालांतर में खुद ही याद नहीं रह जाती, सो ये एक बढ़िया माध्यम है अपनी यात्रा को अविस्मरणीय और चिरस्थाई बनाने का |
बढिया जानकारी
ललितजी आप बड़े भाई की भुमिका में सबके गाइड और मददगार हैं | आपके जैसे जिग्गज को जानकारी बढ़िया लगी, मेरा लिखना सार्थक हो गया | कमेन्ट के लिए धन्यवाद | प्रेम बनाए रहिए |
बहुत बढ़िया अंशुमान जी…. बहुत सी जानकारियां मिलीं आपका ब्लॉग पढ़ कर। शानदार लिखते रहिये।
धन्यवाद भाई ब्लॉग पर आने के लिए। आपको पसन्द आया इसके लिए आभार। बस पढते रहिए, विचार देते रहिए |