दार्जिलिंग और सिक्किम यात्रा – भाग 4

दार्जिलिंग से सिक्किम की यात्रा

दिनांक 30.05.2018

आपलोग मेरी सुबह की सैर दार्जिलिंग हेरिटेज वाक तक साथ थे तो चलिये आगे चलें | आज यात्रा का तीसरा दिन है । हमने गंगटोक के लिये गाड़ी 4200 रूपये में होटल से ही आरक्षित करवा रखा था, पर मुझे कल ऐसा लगा कि कहीं होटल वाले हमसे गाड़ी के लिये ज्यादा तो नहीं ऐंठ रहे | इसलिये सुबह की सैर से लौटते वक्त क्लॉक टावर के पास प्री-पैड टैक्सी बूथ से गंगटोक के लिये बड़ी गाड़ी की रेट पूछी तो मेरे तो तोतो उड़ गये | उन्होंने छोटी गाड़ी के 4500 रूपये और बड़ी गाड़ी के लिये 6500 रूपये बताया, क्योंकि गर्मी की छुट्टियों की वजह से सैलानियों का कुम्भ मेला लगा था यहाँ | खैर, मन ही मन खुश हो लिया और निश्चिंत हो गया कि होटल से ही गाड़ी लेने में भलाई है, पर हमें सतर्क और जागरूक तो रहना ही चाहिये | हम 1 बजे दिन में अपने होटल से विदा हुए गंगटोक के लिये |  सबके चेहरे पर गंगटोक को देखने की ललक और खुशी साफ झलक रही थी | पर निकलते वक्त मेरा मन उधेरबुन में व्यस्त था | दोपहर में निकलने का मतलब हम फिर से उसी परिस्थिति में गंगटोक पहुँचने वाले थे, जिस परिस्थिति में दार्जिलिंग पहुँचे थे | ट्रेन लेट होने और फिर रास्ते में तेज बारिस की वजह से हम दार्जलिंग संध्या 7  बजे पहुँचे थे | जिसका परिणाम ये हुआ हुआ कि हमें होटल में कमरे हद से ज्यादा ऊँचे कीमत पर लेने पड़े | दार्जिलिंग में वस्तु-स्थिति थोड़ी अलग  भी थी, संध्या 6:30  से 7 बजे तक पूर्णतया बाज़ार बन्द हो चुके होते हैं और चारों ओर सन्नाटा फैल जाता है |

दार्जिलिंग टूरिस्म से साभार 
 
दार्जिलिंग से गंगटोक जाने के दो ज्यादा इस्तेमाल होने वाले रास्ते हैं | एक रास्ता वो जिसपर हम चल रहे थे और एक दुसरा रास्ता कितम बर्ड वाइल्ड सेन्चुरी होकर गुजरता है | जैसा मुझे ड्राईवर ने बताया, वो रास्ता और भी ज्यादा घुमावदार और कठिन हैं | हमारी यात्रा माल एरिया और सेनेचल जंगल के रास्ते आगे बढ़ते ही सर्पानुकार पहाड़ी रास्ते पर आ गई | हम धने जंगलों के बीच लहराती, बलखाती, रोमांचित और कभी-कभी सहमा देने वाली शार्प कट लिए रास्ते पर आगे बढ़ रहे थे | हम जैसे- जैसे ऊपर की ओर बढ़ रहे थे, तीखे और अचानक से मुड जाने वाले मोड़ भी बढ़ते जा रहे थे | अभी तक की चढाई देखकर तो लग रहा था कि हम बिल्कुल खड़ी चढाई वाले रास्ते पर जा रहे हैं और हमारी बोलेरो भी यहाँ हांफ और कांप रही थी | हमलोग लगभग 1 घंटे इन सर्पानुकार लहराते पहाड़ी रास्ते पर, बलखाते तेज गति से आगे बढ़ते रहे | लेकिन रास्ते अब ऊपर ना जाकर लगभग सपाट हो चुके थे | हर मोड़ के साथ हम इधर से उधर और उधर से इधर हिचकोले खा रहे थे | इन सबमें भी जो आनन्द दे रहा था वो था वादिओं का अलौकिक सौंदर्य, अल्पाइन के हरे-भरे और ऊँचे-ऊँचे पेड़ों के घने जंगल, धूप और बादलों की लुका-छिपी | हमें पहले की अपेक्षा थोडी गर्मी महसूस हो रही थी | ड्राईवर महोदय ने कहा की शीशे खोल लीजिए, सो हमने वैसा ही किया | गाड़ी की खिड़की से बाहर से आती ठंडी हवा का झोंका अत्यंत ही सुखद प्रतीत हो रहा था ।

 

करीब घंटेभर के सफर के बाद हम लगभर 25 किलोमीटर चल चुके थे, जबकि हमारे गाड़ी की स्पीड काफी तेज थी | पहाड़ी रास्तों पर दूरी किलोमीटर की जगह घंटों में मापा जाता है, जो कि मुझे आज ही समझ आया | जब मैंने न्यू जलपाईगुड़ी से चलते वक्त दूरी पूछी थी तो ड्राईवर ने मुझे धंटे में जवाब दिया था और आज फिर जब मैंने ड्राईवर से दार्जिलिंग से गंगटोक की दूरी की जानकारी लेनी चाही तो फिर से उसने जवाब में 4से 5 घंटे बोला | ड्राइवर महोदय ने विश्राम के लिए टैक्सी को पेशोक चाय बगान के पास एक दुकान पर रोकी । इतनी जल्दी रुकने के दो मुख्य कारण थे | पहला तो ये कि, सर्पानुकार लहराते पहाड़ी रास्ते पर गाड़ी की तेज गति की वजह से श्रीमतिजी और उनकी बहनजी ने उबकाई आते-आते आखिर उल्टियाँ भी हो गई, जिसकी वजह से मेरा भी मन थोड़ा गडबड हो चला था | उन दोनों को तो थोड़ा विश्राम की नितांत आवश्यकता थी | दुसरा कारण ये भी था कि दिन के खाने का समय भी हो रहा था | मैंने तो लगभग 12 बजे दिन में नास्ता और खाना एक साथ खा लिया था, पर बाकी लोगों ने सिर्फ नास्ता ही किया था | ड्राईवर के पेट में चूहें कूद रहे थे | यहाँ दुकाने महिलाओं द्वारा ही संचालित होती दिख रही थी | मैंने इस बारे में ड्राईवर से पूछा तो उसने बताया की ज्यादातर पुरुष बाहर काम करते हैं और नवयुवक ड्राईवर बनना पसन्द करते हैं | 


दुकान में ड्राइवर का स्वागत जानदार तरीके से हुआ, ऐसा जान पड़ता था कि ड्राईवर की उन लोगों से अच्छी जान पहचान थी या ये लोग निश्चित दुकानों पर ही रुकते हों । क्योंकि पूरी यात्रा में मैंने गौर किया, जब भी हम कहीं रुकें हैं, ड्राईवर महोदय की खातिरदारी मीट और चावल से ही हुई | खैर, ये तो लगभग हर जगह ही होता है | हम लोगो ने सफर की थकावट को उतारने के लिए गाड़ी से बाहर आकार हाथ-पावं सीधे किये और अकडन हटाने के लिये दो-दो राउंड ताडासन और कटिचक्रासन किया | दुकाननुमा रेस्टोरेंट के बाहर बिल्कुल ठन्डे-ठन्डे पानी का इंतजाम था, हाथ मुंह धोकर ताजगी आ गई । मैंने बहुत सारी टाफी और हाथ से बने चॉकलेट लिये साथ ही हाजमोला के कुछ पैकेट भी ख़रीदे | ये चॉकलेट बच्चों को बहलाने के साथ-साथ हमलोगों के काम उबकाई आने के वक्त आने वाला था मुहँ में रखने पर शायद कुछ बेहतर महसूस हो | मैं अपने बड़े बेटे को लेकर, जो मेरे साथ यात्रा के पहले दिन से ही गाड़ी की आगे की सीट पर जमा हुआ था, आसपास का अवलोकन करने निकल पड़ा | चुकी मैंने और बड़े बेटे ने साथ ही खाना खा लिया था बाकी लोगों में मेरी माँ और सासुजी को छोड़ सबलोग पेट पूजा करने छोटी दुकाननुमा रेस्टोरेंट में गये | माँ डर के मारे कुछ नहीं खाना चाहती थी कि कहीं आगे उन्हें भी उल्टी ना हो जाये | बाहर मौसम खुशनुमा था, हमलोग तब तक चहलकदमी करते रहे जबतक सब पेट पूजा कर बाहर नहीं आ गये | बाद में पता चला कि सिर्फ बच्चों को खाना खिलाया गया क्योंकि खाना बिल्कुल ही घटिया था | 


लगभग आधे घंटे के विराम के बाद हम फिर से चल पड़े थे अपने सुहाने सफर पर | हम तेजी से सड़क मार्ग (NH) 31A पर बढ़ते हुए तीस्ता बाज़ार पहुँचे, कुछ देर से तीस्ता नदी बिल्कुल शांत भाव से बहती हुई हमारे साथ चल रही थी | तीस्ता नदी हिमालय की ग्लेसियर (तीस्ता) से निकलकर रांगपो, जलपाईगुड़ी और कलिंगपोंग को सजाती-सवारती बांग्लादेश होते हुए 309 किलोमीटर लंबी दूरी तय कर बंगाल की खाड़ी में अपना अस्तित्व खोने से पहले ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती हैं | तीस्ता नदी के साथ घाटियों का सौन्दर्य मानस पटल पर अलौकिक और अविस्मरणीय छाप छोडे जा रहा था | यहीं रास्ते में कलिंपोंग की ओर जाती सड़क दिखाई दी | कलिंपोंग भी एक अच्छी जगह है धूमने-फिरने की, अगर आपके पास एक अतिरिक्त दिन हो | थोड़ा आगे बढ़ते ही तीस्ता नदी पर बने लोहापुल के नाम से प्रसिद्ध पुल पर पहुँचे, हमने यहाँ गाड़ी रुकवाई और पुल से अति मनोरम दिखने वाले दृश्य को अपने अन्दर और फोटो दोनों रूपों में समाहित किया | लगभग 30  मिनट चलने पर ड्राईवर महोदय ने बताया कि यहाँ रिवर राफ्टिंग पॉइंट है, जहाँ रिवर राफ्टिंग का आनन्द ले सकते हैं | मैंने भी सोचा चलकर देखा जाये | तभी हमें जीप पर राफ्टिंग बोट नजर आ गई, सब आश्चर्यचकित हो जीप पर लदे राफ्टिंग बोट को देख रहे थे | बच्चे तो बोट देख मारे खुशी ताली बजाते उछलने लगे, हम बस उछल नहीं रहे थे पर हालत कुछ वैसी ही थी |

कभी गाड़ी पर नाव, कभी नाव पर गाड़ी

हसरत भरी नजरों से मैं भी जीप से उतरकर झोपड़ीनुमा काउन्टर पर जा पहुंचा, पर रेट सुनकर मेरे तोते उड़ गये | पहले ही हमने होटल में अपनी जेब कटवाई थी रात हो जाने की वजह से | अब ये हाई फाई रेट जो बिल्कुल ही हमारे बजट से बाहर था | हम बच्चों सहित 10 लोग थे, तो हमें 2 बोट लेने को कहा | यानी एक बोट में पांच लोग रिवर राफ्टिंग को जा सकते थे, जो 3.5 किलोमीटर लंबी राफ्टिंग का 4,000 रूपये चार्ज कर रहे थे | मतलब 8,000 रूपये ढीले करने पर हम छल-छल करती तीस्ता नदी में राफ्टिंग का आनन्द ले सकते थे | वैसे तो मेरा मन कर रहा था कि बस कूद पडूं, पर चार-चार छोटे बच्चों की टोली भी साथ थी जो किसी भी कीमत पर ये मानने वाले नहीं थे कि हममें से कोई राफ्टिंग के लिये बोट में बैठा हो और वो बाहर रहकर ऊपर से सिर्फ तालियाँ बजाए | कम-से-कम मेरे दोनों रतन धन तो मानने वाले नहीं थे, बड़े बेटे ने एक बार जिद पकड़ी नहीं कि फिर छोटा भी उसके दल में शामिल और दोनों मिलकर अगर कहीं इन वादियों में राग भैरवी और राग मल्हार गाने लगे तो फिर हो गई राफ्टिंग | बच्चों को समझाना कितना मुश्किल होता है वो आपलोग समझ सकते हैं और वो भी छोटे बच्चों को …. बाप रे बाप | यहाँ बुकिंग करने के बाद बोट के साथ ये लोग अपनी जीप में ही राफ्टिंग पॉइंट ले जाते थे | राफ्टिंग के लिये जरूरी निर्देश ठीक तरह से समझ लेने के बाद एक ट्रेनर के साथ राफ्टिंग शुरू होती थी | छोटे बच्चों को राफ्टिंग के लिये ले जाना मुझे बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं लगा पर राफ्टिंग देखने की लालसा लिये हम पहुँच गये व्हाइट रिवर राफ्टिंग पॉइंट के पास, जहाँ बोट को नदी में उतारा जा रहा था | हम बस देखकर ही प्यास बुझाने की कोशश कर रहे थे | पर राफ्टिंग बोट को नदी में जाता देख-देख कर हमारी हालत जल बिन मछली जैसी हो रही थी | नदी में ज्यादा उफान नहीं थी, कुछ लड़के सड़क किनारे बंसी (फिशिंग राड) लेकर बैठे थे | यहाँ हम लगभग 15-20 मिनट रुके फिर आगे बढ़े अपने पड़ाव की ओर, पर मैं और श्रीमतीजी की बहनजी काफी देर तक राफ्टिंग ना कर पाने के गम में गुमसुम, मातम मानते रहे |

 

काफी देर बाद बेटे की तरह-तरह के सवालों ने मौन तुडवाया | बड़ा बेटा बड़ा ही बातुनी और जिज्ञासु है और उसके  सवाल-जवाब का सिलसिला कभी खत्म ही नहीं होता | एक घंटे के सफर के बाद हम फिर से एक नदी पर बने पुल को पार कर रहे थे, मैंने सोचा ये भी तीस्ता नदी ही है पर एक बोर्ड पर ‘रानिखोला नदी’ लिखा दिखा, ये आगे चलकर तीस्ता नदी में मिल जाती हैं | वहाँ गेट पर Welcome to Sikkim” देख सबकी बाछें खिल आई, गेट में प्रवेश करते ही हम गंगटोक के रानिपूल नाम के स्थान पर थे | 


हम संध्या के ट्राफिक को झेलते हुए, तक़रीबन 6:30  बजे टैक्सी स्टैंड पहुंचे, रास्ते में ही ड्राईवर ने बता दिया कि हम लोकल टैक्सी की मदद से ही हम सिटी में प्रवेश कर सकते हैं | बाहर से आनेवाली या जानेवाली गाडियों का सुबह 8 बजे के बाद सिटी में प्रवेश निषेध है  | स्टैंड में हमें काफी देर तक टैक्सी के लिये रुकना पड़ा, आखिर एक बड़ी टैक्सी मिली जो हमें एम जी रोड़ तक ले गई |

आपकी जानकारी के लिये बता दें कि गंगटोक में कई टैक्सी स्टैंड हैं, हर स्टैंड से अलग-अलग जगहों के लिये टैक्सी चलती है | हम देवराली टैक्सी स्टैंड पर थे, यहाँ से लोकल साइट्स पर घूमने के अलावा सिलीगुड़ी, न्यू जलपाईगुडी और दार्जलिंग के लिये शेयर और आरक्षित दोनों तरह की टैक्सी उपलब्द हैं | सिलीगुडी के लिये बस सेवा भी यहाँ उपलब्ध हैं | पश्चिम बंगाल से आनेवाली टैक्सी 31A राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित इस स्टैंड से आगे नहीं जा सकती |
अब समस्या फिर से वही थी, जिसका मुझे डर था | थके-हारे चार-चार बच्चे, लगभग संध्या के 7 बज रहे थे | मतलब होटल में कमरे के लिये हम ज्यादा इधर-उधर करने की स्थिति में नहीं थे | दो-तीन जगह पता करने पर निराशा हाथ लगी, होटल में कहीं या तो कमरे खाली नहीं या फिर एक ही कमरा | फिर हमें टैक्सी ड्राईवर एम जी रोड पर पेंटालून शो रूम के बिल्कुल बगल में एक होटल में ले गया | होटल साफ-सुथरा और सुन्दर था, बड़ी सी पार्किंग मतलव 3या 2 स्टार स्तर का तो था ही | वहाँ सिर्फ एक सुइट खाली थी, जिसका रेट 5000 रूपये, सुनकर मुझे चक्कर ही आने लगा | सुइट तो हम देख आये- एक बेडरूम जिसमें सुन्दर ड्रेसिंग टेबल, कबर्ड और बेडरूम से लगभग चार गुना बड़ा ड्राइंग एरिया जिसमें सोफा सेट के अलावा chaise longue जिसे पता नहीं हिन्दी में क्या कहते हैं (आराम कुर्सी कह सकते हैं), खाने के लिये डायनिंग टेबल और 47-48 इंच का टेलिविज़न के साथ ड्राइंग रूम में आग जलाने के लिये चिमनी | होटल की मालकिन भी संयोग से स्वागतकक्ष में बैठी मिल गई | उसने भी यही कहा कि अभी इस समय जब गंगटोक सैलानियों से अटा पड़ा हैं और रात भी हो चली है, आपको दो-तीन कमरे मिलना लगभग नामुमकिन ही है | अब क्या करें और क्या नहीं, कुछ समझ ही नहीं आ रहा था | तभी होटल की मालकिन ने कहा आप चाहें तो कुछ होटलों में कोशिश कर देख लें, अगर कहीं कमरे नहीं मिलते हैं तो आप मेरे एक सुइट में ही काम चला लीजिए | वैसे भी आप कम से कम दो कमरे लेंगे, जो कम से कम 20002500 रुपये का होगा तो दो कमरों का भाडा 40005000 रूपये लगेंगे ही | ना नुकुर करते मामला 4500 रुपये पर आया, अन्य कोई उपाय न देख हमने उसी होटल के आलीशान सुइट में डेरा-डंडा डाल दिया | अब सबलोगों को सुबह जल्दी निकलने की मेरी जिद का कारण अच्छे से समझ आ रहा था | पर जब आप समुह में होते हैं तो कुछ बंदिस तो हो ही जाती हैं, सबकी बात थोड़ी-थोड़ी सुन लेने में ही सौहार्द बना रहता है |
हमने बोरिय-बिस्तर को कमरे में जमाया और हाथ-मुहँ धो बाहर निकले खाने | वैसे होटल में भी खाने के लिये रूम सर्विस उपलब्ध थी, पर हम इसी बहाने थोड़ा मार्केट देख लेना चाहते थे | इसके पहले हमने कल के लिये गाड़ी और छंगु झील और बाबा हरभजन मन्दिर जाने का कार्यक्रम तय कर, फोटो और पहचानपत्रों की प्रतिलिपि परमिट के लिये होटल में ही दे दी | हमलोग पहचानपत्र तो लाए थे पर पता चला कि दो-दो फोटो भी देने पड़ेंगे, सामने ही फोटो और प्रतिलिपि वाली एक दुकान से फोटोग्राफर लाकर कमरे में ही सबकी फोटो सेशन करवाई गई | बाद में फोटो तैयार होकर होटल पंहुच गया पर इसके लिये हमें 500 रूपये खर्च करने पड़े | पहले ही मैंने तय कर रखा था कि नाथुला नहीं जाना है हमें | इसके पीछे एक छोटे सदस्य की स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानी थी, जिसकी वजह से हम ज्यादा जोखिम लेने के मूड में नहीं थे |
रात के 9 बज रहे थे पर माल रोड़ की चहल-पहल अभी भी शबाब पर थी | जगमगाते-चमचमाते रंगीन लाइटों से सजी माल बिल्कुल दुल्हन सी लग रही थी | सबसे पहले हमने पेट पूजा की, पेट भरने के बाद बाहर का मुआयना शुरू हुआ | बहुत ही सुन्दर और साफ-सुथरी चौड़ी सड़क के दोनों ओर सजी गर्म कपड़ों, विदेशी शराब, रेस्टोरेंट अदि दुकानें, सड़क के बीचों-बीच करीने से पौधों की कतार और साथ ही बैठकर सुस्ताने के लिये एक छोर से दूसरे छोर तक मार्वल लगे चबूतरों के अतिरिक्त कुर्सियों की कतार | जगह-जगह पर करीने से रखे साफ-सुथरे कूड़ेदान | क्या भारत में भी ऐसी साफ-सुथरी जगह हो सकती है और वो भी तब जब बिल्कुल यहाँ गर्मियों की छुट्टियों की वजह से सैलानियों का कुम्भ मेला लगा हो | जो हम देख रहे थे उसपर बिल्कुल विश्वास ही नहीं हो रहा था | मेरी माँ ने भी कह दिया दार्जिलिंग से अच्छी जगह तो गंगटोक ही है, हमें ज्यदा समय यहीं देना चाहिये था | पर अब कर भी क्या सकते थे, बाकी अधूरी चाहत अगली यात्रा पूरी की जाएगी | मार्केट घूमते-फिरते लगभग 10 बज गये, हम होटल की ओर चल दिये | मैं तो सुबह की सैर की वजह से ज्यादा ही थक चुका था, अब तो बस एक ही जगह बाकी रह गया देखने को और वो था हमारा बेसब्री से इंतज़ार करता राजा-महाराजों की शानों-सौकत वाला सुईट का बिस्तर |
शुभ रात्रि  

आगे अगले किस्त में …

कुछ और फोटो 

View from Bridge on Teesta River
Teesta River View
White Water Rafting in Teesta River
Rafting in Teesta River
White Water Rafting in Teesta River
White Water Rafting in Teesta River
White Water Rafting in Teesta River




दार्जिलिंग से गंगटोक गूगल बाबा पर :

 
 
 
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5 thoughts on “दार्जिलिंग और सिक्किम यात्रा – भाग 4”

  1. चक्रपाणि जी ओह साॅरी खर्चपाणि जी आप तो बहुत महंगे घुमक्कड़ हो। हां जी किलोमीटर तो बस कहने के लिए होता है पहाड़ों में वहां की दूरी को समय में ही मापा जाता है, उसी दूरी को कभी एक घंटे तो कभी तीन घंटे भी लग जाते हैं तो समय के हिसाब से ही बताते हैं, दूरी का कोई खास काम रह नही जाता पहाड़ों में। मैदानों में एक घंटे में 60 तो पहाड़ों में 20 भी नहीं निकल पाता है।
    एक सुझाव और कुछ ऐसा कीजिए कि फोटो पर तिथि और समय नहीं आए तो बेहतर है। बाकी सब बढि़या।
    हमारे लिए तो 450 का कमरा भारी पड़ता है जी और आप 4500 का कमरा लूट लिए। हमने तो केवल 45 रुपए के कमरे में समय गुजारा है मतलब आपके एक दिन का कमरा मेरे लिए 100 दिन गुजारने के लिए पर्याप्त है।

  2. हा हा हा……
    बढ़िया नाम दिया धन्यवाद | इस ट्रिप में पुरी तरह लूटवा कर आया, सही बोलू तो |
    वैसे आप तो महान हैं प्रभु, आपलोगों से अभी सीखना है काफी कुछ | खास कर असली यायावरी के गुण | इतनी सुन्दर विचार देने के लिए �� से शुक्रिया | उम्मीद है ऐसे ही बड़े भाई की तरह भविष्य में भी सुझाव मिलते रहेंगे |

  3. बहुत सुंदर वर्णन मजा आ गया,,हम भी सिक्किम घूम आये आपके साथ,रिवर राफ्टिंग खूबसूरत,,,,,

  4. धन्यवाद दीदीजी,
    आपको मेरा यह प्रयास पसन्द आया, नवअंकुर हूँ अभी लिखने में काफी समय लगता है | सिक्किम की यात्रा वृतान्त अभी चल रही है, उसे भी पढ़े | जल्द ही छांगू और बाबा मन्दिर ले चलूँगा | साथ रहिए |

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