nainital zoo

नैनीताल चिडियाघर की सैर – Nainital Zoo

तालों का शहर नैनीताल – Lake City Nainital  भाग – 4

तालों का शहर नैनीताल में आज हमारा दूसरा दिन है. पिछले भाग में आपने पढ़ा हम माँ नयना देवी के दर्शन कर रोपवे से बैरंग लौटकर चिड़ियाघर की सैर को चले गए. आगे पढ़िए –

चिड़ियाघर की सैर के लिए बच्चे काफी उत्साहित थे. चिड़ियाघर के लिए शटल 20 – 25 मिनट इंतजार के बाद ही मिल पाया, रविवार की वजह से अच्छी भीड़ थी. शनिवार-रविवार ने हमें कई और जगहों पर भी परेशानी में डाला है. हमने फरवरी में एक ट्रिप की थी गया-बोधगया-राजगीर की. राजगीर में हमलोग रविवार को बिहार बोर्ड परीक्षा के अंतिम दिन फंसे, परीक्षार्थियों की भीड़ ने हमारे ट्रिप की बैंड बजा दी. कुछ देख पायें, कुछ नहीं वाली हालत में राजगीर से विदा लिया. जब भी मैं फॅमिली के साथ ट्रिप प्लान करता हूँ ये जरूर ध्यान रखता हूँ कि रविवार को ट्रेन में ट्रेवल न करूँ. कई बार ट्रेन में विभिन्न कॉम्पिटिशन के परीक्षार्थियों की वजह से बहुत बुरा फंसा हूँ. आगे से ट्रिप प्लान करते वक्त इस बात का भी ध्यान रखूँगा की पूरी ट्रिप में शनिवार और रविवार न ही पड़े तो भला. वीकेंड हमारी पूरी ट्रिप की ऐसी-तैसी कर देते हैं.

हमने शटल की चार सीटें बुक की थी, बोलेरो खाली होते ही हम कूद-फांद कर बीच की सीट पर कब्ज़ा जमा लिया. छोटे कुमार श्रीमतिजी के गोद में पसर लिए और गाड़ी बिल्कुल खड़ी चढाई पर चल पड़ी. चिड़ियाघर की चढाई माल रोड से लगभग दो किलोमीटर रही होगी. पतली सी ऊपर की ओर जाती सड़क पर गाड़ी झटके देती जा रही थी. क्या कहूँ फुल पिछवाड़ा मसाज हो गया, एक बार तो ऐसा लगा कि गाड़ी के साथ हम वापस नीचे पहुँचने वाले हैं. सच कहूँ तो हम गाड़ी में बैठे नहीं, डर के मारे गाड़ी को पकड़ लटके थे. दस-बारह मिनट की शटल की यात्रा किसी एडवेंचर से कम नहीं थी. खैर, जब गाड़ी रुकी तो जान में जान आई और सब के सब गाड़ी से ऐसे कूदे जैसे कोई भूतिया शो देख लिया हो.

क्या कहूँ फुल पिछवाड़ा मसाज हो गया, एक बार तो ऐसा लगा कि गाड़ी के साथ हम वापस नीचे पहुँचने वाले हैं. सच कहूँ तो हम गाड़ी में बैठे नहीं, डर के मारे गाड़ी को पकड़ लटके थे. दस -बारह मिनट की शटल की यात्रा किसी एडवेंचर से कम नहीं थी. खैर, जब गाड़ी रुकी तो जान में जान आई और सब के सब गाड़ी से ऐसे कूदे जैसे कोई भूतिया शो देख लिया हो.

सड़क पर बैरियर लगा था, इसके आगे गाड़ी नहीं जा सकती. इधर-उधर नजर दौडाया, आसपास चिड़ियाघर तो क्या एक चिड़िया भी नजर न आ रही थी. बाकि लोग आगे जा रहे थे तो हम भी चल दिए. चिड़ियाघर के गेट तक की खड़ी चढाई ने हालत पतली कर दी, सामने गेट पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था- गोविंद बल्लभ पन्त उच्च स्थलीय प्राणी उद्यान, नैनीताल. जिस पहाड़ी पर चिड़ियाघर है उस पहाड़ी का नाम “शेर का डांडा” (Tiger’s Ridge) हैं, जो नैनीताल के सात पहाड़ियों में से एक है और ऊंचाई 2217 मीटर यानि 7274 फीट. अब समझ आ रहा था हमारा गेस्ट हाउस “कैलाश पर्वत” समान क्यों लग रहा था. हम भी इसी “शेर का डांडा” (Tiger’s Ridge) पहाड़ी पर डेरा-डंडा डाले हैं.

Nainital Zoo
Govind Ballabh Pant High Altitude Zoo, Nainital

गोविंद बल्लभ पन्त चिड़ियाघर, नैनीताल

zoo map
Zoo map

नैनीताल चिड़ियाघर का नाम गोविंद बल्लभ पन्त उच्च स्थलीय प्राणी उद्यान है जो भारत में मौजूद चंद गिने-चुने उच्च स्थलीय चिड़ियाघर यानि हाई एल्टीट्यूड ज़ू (High Altitude Zoo) में से एक है, इसकी ऊँचाई 2100 मीटर यानि 6890 फीट है. वैसे तो माल रोड पर आते-जाते आपको चिड़ियाघर का बोर्ड नजर आ जाएगा, पर गलतफहमी में मत आना कि पास में ही है. गोविंद बल्लभ पन्त उच्च स्थलीय प्राणी उद्यान “शेर का डांडा” की पहाड़ी पर माल रोड से लगभग 2 किमी उपर स्थित है, पीछे “शेर का डांडा” पहाड़ी पर घना जंगल है. 4.693 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले चिड़ियाघर की स्थापना उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र के वन्य जीवन और जैव विविधता के संरक्षण और सुरक्षा के उद्देश्य से सन 1984 की गई, जो लगभग 11 साल के बाद 1 जून 1995 को जनसामान्य के लिए खोला गया. श्रीमतिजी हमारे लिए टिकट लेकर आ गई थी, टिकट दर इस प्रकार है –

चिडियाघर की टिकट

प्रति व्यक्ति – 100 रूपये (13 वर्ष से  60 वर्ष के लिए)

प्रति बच्चे –  50 रूपये (5 वर्ष से 12 वर्ष के लिए)

वरिष्ठ नागरिक एवं दिव्यांगों के किये प्रवेश निशुल्क हैं.

विदेशियों के लिए – 200 रूपये

विदेशियों बच्चों के लिए – 100 रूपये

छात्रों के लिए विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून), चिड़ियाघर स्थापना दिवस, ओजोन दिवस (16 सितम्बर) और वाइल्ड लाइफ वीक (11-15 मार्च) के दौरान प्रवेश निशुल्क होता है.

कब बंद रहती है ?

प्रत्येक गुरुवार, 26 जनवरी, 15 अगस्त, होली और दीपावली को चिड़ियाघर बंद रहता है।

parrot_love
Made for Each Other

टिकट लेकर चल पड़े और ऊपर की ओर, मतलब ऐसा लग रहा था कि आज हम बादल तक तो पहुँच ही जाएंगे नैनीताल चिड़ियाघर देखते-देखते. हर स्टेप ऊपर की ओर ही जा रहा था और ऊपर … और ऊपर….. फिर सबसे पहले हमने पक्षियों को देखा  – बच्चे रंग बिरंगे तोते, सिल्वर पैयिएन्ट्स, मोर और सफ़ेद मोर के साथ कई पक्षियों ने बच्चों को बहुत देर तक बांधे रखा. जब आगे बढ़ने को हुए तो तोते के जोड़े का प्यार का अफसाना शुरू हो गया, सफ़ेद मोर ने पंख फैला नाचना शुरू कर दिया. बच्चे मोर का नाच देखने थम से गए और खूब तालियाँ बजाई. मोर ने नाचना बंद किया तो नन्हें कुमार ने बोला एक बार और, सच में सफ़ेद मोर ने फिर से नाचना शुरू कर दिया. बच्चे खुश, फिर दोनों नटखट ने तालियाँ बजानी शुरू की और वहाँ मौजूद सभी बच्चे भी तालियाँ बजाने लगे.

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Made for Each Other
White_peacock
Dancing White Peacock

क्या – क्या देख सकते हैं?

आगे बढे तो फिर खड़ी चढाई, चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी थी. लोग शरीर को घसीट रहे थे. मजा तो बड़ी तोंद वालों को देख आ रहा था, ऐसे हांफ रहे थे जैसे ओलंपिक से भागते-भागते यहाँ आ गए हों. दार्जिलिंग चिड़ियाघर को देख मैंने सोचा था इतनी चढाई तो किसी चिड़ियाघर में नहीं होगी पर नैनीताल चिडियाघर के आगे दार्जिलिंग चिड़ियाघर तो बहुत ही आसान था. जबकि नैनीताल चिड़ियाघर काफी छोटा है, जो कि मात्र 4.693 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हैं और दार्जिलिंग चिड़ियाघर का क्षेत्रफल 27.3 हेक्टेयर हैं. पक्षियों की संख्या भी ज्यादा दार्जिलिंग में थी. आगे बढे तो हिमालयन भालू के पास पहुंचे, गर्मी और तीखी धुप से भालू परेशान-परेशान दिख रहा था. वही पास में एक तेंदुआ भी दिख गया. दोनों नन्हे बच्चे इसे कुत्ते और बकरी की श्रेणी का समझ रहे थे, जिसे वो पास जाकर सहला सकें. छोटे कुमार ने कहा “किन्ना सुन्दर हैं न पापा, इसे घर ले चलते हैं.” और मेरे हंसी फुट पड़ी.

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Himalayan Bear
Tiger
Tiger

फिर से तीखी खड़ी चढाई, कुछ चीतल, हिरन, बारहसिंगा और कस्तूरीमृग के बाड़े देखते आगे बढे दो रॉयल बंगाल टाइगर मिले. एक तो काफी हिंसक लग रहा था, दूसरा जो जाले के अंदर था उस पर थोड़ी-थोड़ी देर में ऐसे गुर्राता और आक्रमक होकर हमला करता कि बस पूछिए मत. पर चुकी दूसरा जाले के अंदर था, तो सुरक्षित था. यहाँ कई सारे उच्च स्थलीय प्राणियों को देखे जा सकते हैं, जो अन्य चिडियाघरों में देखने को नहीं मिलते-जैसे हिमालयी काले भालू, तेंदुए, साइबेरियाई टाइगर, लाल पांडा, प्लम सीवेट बिल्ली, वुल्फ, सिल्वर पैयिएन्ट्स बंदर, हिल फॉक्स, घुरड, बार्किंग हिरण, सांभर इत्यादि. यहाँ कई सारे लाल पांडा थे, जिसे हमने पहली बार दार्जिलिंग चिड़ियाघर में देखा था. धुप और गर्मी से लाल पांडा पेड़ों के झुरमुटों में बेसुध पड़े थे, तो न तो इसे ठीक से देख ही पाए और न हि फोटो ही ले पाया. मुझे भी लाल पांडा बहुत ही सुन्दर लगते हैं.

Macao

फिर से शुरू हुई अंतिम चढाई जो हमें सीधी लेकर गई तेंदुआ के पास जो काफी बड़े जंगल जैसे एरिया में थे और एक-दो नहीं कई – कई थे. पर यहाँ भी दोपहर हो जाने के वजह से महाशय सुस्ता रहे थे, पर चार – पांच की संख्या तो दिख ही रही थी. इस अंतिम पड़ाव पर आकार अब चलने की हिम्मत न रही, तो वही बने एक शेड में सुस्ताने बैठ गया. पर बच्चे कहाँ बैठने देते हैं. “भूख लग गई मम्मी” गाना शुरू हो गया. बैग में बिस्किट के दो छोटे पैकेट थे, जो उन्हें दे दिया गया. इस तरह बच्चों का और हमारा भी चिड़ियाघर घूमने का कार्यक्रम बैंड बजाकर समाप्त हुआ.

leapard
Leopard

हिम्मत तो बची नहीं थी कि जल्दी नीचे चला जाए पर बच्चों के गाने ने पैरों को गति दे दी. वैसे दोपहर हो ही चुकी थी, हमारे पेट में भी चूहें बेकाबू हो उधम मचा रहे थे. गिरते-पड़ते-लुढकते हम फिर से टैक्सी स्टैंड पहुंचे और गाड़ी के लिए फिर से आधे घंटे के इंतजार ने और थका दिया. गाड़ी आई तो फिर से बीच की सीट मिल गई और नीचे चल पड़े. इस बार शायद पेट में कूदते चूहों ने डर खत्म कर दिया था.

children
Children Busy with Zoo Site Map
zo pic
Zoo Site Map, which children recognize too.
zoo gate
Thanks for Visiting

नीचे काफी देर तक रिक्शे का इंतजार करते रहे, पर न रिक्शा मिलना था न मिला. चूहें तो जैसे हमें ही खा जाने वाले थे, बच्चों का गाने के साथ डांस भी शुरू होने लगा था. कोई उपाय न देख पैदल ही पंत पार्क चौराहे की ओर चलना शुरू किया, जहाँ से सुबह होकर आए थे. गेस्ट हाउस में खाने को कुछ मिलने वाला था नहीं तो हमें बाहर ही खाना-खाना था. माल रोड पर ही अन्नपूर्णा रेस्टोरेंट (शुद्ध शाकाहारी) में जमकर भोजन किया. माल रोड पर होने की वजह से थोडा महंगा तो था, पर खाना स्वादिस्ट था. दूसरे सस्ते भोजनालय का ठिकाना बाद में भटकने के बाद ही ढूंढा जा पाएगा, माल रोड पर बाकि सभी रेस्टोरेंट इससे भी महंगे हैं, पर शाकाहारी कोई नहीं. खाना खाने के बाद मोटे-मोटे रजाई में घुस “अजगर और गैंडे” की तरह पसर जाने को बड़ा जी कर रहा था. पर बच्चों के साथ सुबह के वादे को लेकर बच्चे अड् गए. कौन सा वादा? आगे क्या हुआ?

पर बच्चों के साथ सुबह के वादे को लेकर बच्चे अड् गए. कौन सा वादा? आगे क्या हुआ?

आगे अगले किस्त में …

view 4m zoo
Beautiful View of Nani Lake & City from Nainital Zoo.
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4 thoughts on “नैनीताल चिडियाघर की सैर – Nainital Zoo”

  1. भाई साहब जन्माष्टमी 2015 में 7 दोस्त गए थे नैनीताल। सुबह सुबह चिड़ियाघर निपटाने की सोच कर पैदल शॉर्टकट से पहुंच गए। ऊपर जाके पता चला कि घड़ी में गलत समय देखने की वजह से हम 1 घंटा पहले पहुँच गए हैं सो वापिस नीचे आये.. घूमे फिरे.. दोपहर बाद फिर एक बार चढ़ाई चढ़ी।
    ज़ू के अंदर की चढ़ाई देख कर 2 दोस्तो ने चहलकदमी करते हुए टाइगर के सामने डेरा जमा लिया कि तुम लोग जाओ हमारी हिम्मत नहीं है।
    पांडा उस समय शायद नहीं थे और भालू दिखाई नहीं दिया लेकिन ट्रिप मस्त थी।
    आपके यात्रा वर्णन ने फिर से नैनीताल दर्शन करवा दिए। जय हो भाई साहब आपकी जय हो

    1. अवनीश कौशिक जी,
      नैनीताल चिड़ियाघर पैदल जाना और आना वो भी दो बार, एक चोटी फ़तेह करने जैसा ही है. आपलोगों की क्या हालत हुई होगी वो वही समझ सकता है जिसने नैनीताल चिड़ियाघर देखा है, बाकी लोग तो अंदाजा भी नहीं लगा सकते भाई.

      पांडा को शायद हाल-फ़िलहाल ही लाया गया है और कई सारे थे. हिमालायन भालू हमने पहली बार दार्जीलिंग में देखा था. उसकी डांस का वीडियो भी बनाया था, आप भी देख लें कैसे डांस कर रहा था : नाचता भालू

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