Meghalaya

मेरी पूर्वोत्तर यात्रा : मेरे सपनों का प्रदेश मेघालय – My North East Visit : My Dream Destination Meghalaya

मेरी पूर्वोत्तर यात्रा : मेरे सपनों का प्रदेश मेघालय – भाग 1

यात्रा की तैयारी

गर्मी की छुट्टियों में नैनीताल से लौटते ही कार्यस्थल पर एक दुर्घटना में दाहिने हाथ की कलाई और अंगूठे की हड्डी टूट गई और प्लास्टर चढ़ाकर बिस्तर पर लंबे समय तक पड़ा रहा. ये मेरे लिए बड़ा उबाऊ और थकाऊ काम था- बेकार, नाकारा होकर पड़े – पड़े दिन बिताना. न ज्यादा देर बैठ पाता था, न ही टाइप कर पाता था जिससे अपनी नैनीताल यात्रा वृत्तांत ही पूरी कर डालता.

जैसे ही हाथ कुछ ठीक हुआ मन बंजारे की तरह भटकने लगा, जैसे कई सालों से इसे बांध कर रखा गया हो. झट से दो-तीन दिनों की घुमक्कड़ी का प्लान बना डाला और डेस्टिनेशन थी भोले की नगरी वाराणसी. वाराणसी यात्रा कुछ अकस्मात कारणों से अंतिम क्षणों में रद्द करनी पड़ी. मन तो जैसे कैद में बेचैन हो रहा था और हाथ आया एक मौका भी जाता रहा. बरसात में कहीं जाना ठीक नहीं रहेगा, करके मन को समझाया – बुझाया. पर यायावर का चंचल मन कहाँ शांत बैठने वाला. इसी बीच कुछ मित्रों ने मेघालय की ताजा – ताजा फोटो शेयर की, जिसमें कुछ फोटो बारिश की बूँदों से भींगे – भींगे पहाड़, जंगल, पेड़, पत्ते और उफनती चित्कार करती झरने की थी. जिसने पूर्वोत्तर (North East) को देखने की वर्षों से कब्र में दबी पड़ी प्यास को जगा दिया, मन तो जैसे बौरा गया.

मेघालय का खासी हिल्स गारो-खासी पर्वत शृंखला का एक भाग है, साथ ही यह पटकाई पर्वतशृंखला और मेघालय के उपोष्णकटिबंधीय वन क्षेत्र के अंग हैं. यह क्षेत्र खासी जनजाति के लोगों का निवास स्थान है, जो पारंपरिक रूप से छोटे-छोटे कबीलों में रहते हैं. अंग्रेजों ने मेघालय को पूर्व का स्कॉटलैंड की उपाधि दी थी. हमारा नाता गारो-खासी हिल्स से बचपन में मानसिक रूप से पिताश्री ने एक कविता के माध्यम से जोड़ दिया था. पिताश्री को वो कविता इतनी पसंद थी कि वो हमेशा ही घर में गुनगुनाते रहते थे. माताश्री की खिंचाई करनी हो या ताना मारना हो तो शुरू हो जाते थे –

“मैं गारो खासी का चासी”

ये कविता उनके लिखे रचनाओं के पुलिंदे में कहीं गुम हो गई है, इसलिए अभी उस कविता को सही-सही मैं लिख नहीं सकता. इसके लिए माफी चाहता हूँ. तो पिताश्री की कविता की वजह से मानसिक जुड़ाव खासी हिल्स से और यहाँ के पहाड़ों में भटकने और वहाँ से सौंदर्य को निहारने की बचपन से ही इच्छा थी. मेघालय मेरे लिए ऐलिस इन वंडरलैंड यानि एक जादुई दुनिया की तरह सम्मोहित करने वाला एक सुन्दर प्रदेश था. जिसे ताजा – ताजा फोटो ने भड़का दिया और बस और क्या चाहिए, शुरू हो गई मेघालय यानि पूर्व के स्कॉटलैंड की यात्रा पर निकलने की सुगबुगाहट. मेघालय के मदहोश कर देने वाले प्राकृतिक सौंदर्य, घने जंगलों, झरनों का असली आनन्द तो बरसात में ही है, ऐसा कई जानकार मित्रों ने बताया तो हमने भी भींगे-भींगे मौसम यानि बरसात में ही निकालने कि ठान ली.

मेरी पहली सोलो बैकपैकर ट्रिप का प्लान तैयार था. मतलब असली यायावरी, घुमक्कडी और बैकपैकर ट्रिप का आनन्द लेना था. जो पूर्वोत्तर (North East) के लिये एक चैलेन्ज की तरह था, क्योंकि यहाँ सबसे ज्यादा दिक्कत है आवागमन की… बसें न के बराबर हैं या नहीं हैं. तो साधन बचता हैं शेयर्ड टैक्सी या टैक्सी, जिसमें शेयर्ड टैक्सी की सुविधा भी हर जगह के लिये नहीं है. तो सबसे ज्यादा खर्च घूमने के साधन पर ही होना था शायद. ट्रिप की घोषणा फेसबुक पर की तो कई मित्रों ने साथ चलने की भी इच्छा जाहिर की. एक से भले दो ऐसा सोचकर सबको हाँ करता रहा. मेरे पूर्वोत्तर की planned सोलो ट्रिप में एक अंतरंग मित्र ने हमसफ़र बनने की इच्छा प्रकट की तो मैंने भी हाँ कर दी. अंतरंगता इस स्तर की है या थी कि वो मेरे साथ एक ही फ्लैट में साथ रहे, लगभग दो साल. टिकट बनते समय तक सिर्फ मुरली कृष्णा का जाना ही पक्का हो पाया और हमने स्लीपर में टिकट लेकर यात्रा पर निकलने की आधी तैयार पूरी कर ली.

मैं ठहरा शाकाहारी योग पथिक तो इस यात्रा पर निकलने के पहले कुछ ग्रुप में वहाँ के खानपान के बारे में जानकारी ले रहा था. ज्यादातर लोगों की तरफ से यही जवाब आया कि शाकाहारी खाने-पीने की दिक्कत ही नहीं महा दिक्कत है पुरे पूर्वोत्तर में. और तो और कई उम्द्दा ख़ुफ़िया जानकारों के कई अजीबोग़रीब कहानियों से पाला पड़ा- वहाँ के लोग खतरनाक होते हैं…., हमला कर देते हैं…., तुरा की तरफ किसी ने बताया कि एक विद्रोहियों का ग्रुप है जो लोगों को उठा ले जाते हैं और मोटी रकम की माँग करते हैं…. रोमांचक और डरावनी देने वाली जाने कितनी ही कहानियाँ मेरे खोपड़ी के हार्डडिस्क में जमा हो गई. एक बार तो मैंने भी सोचा….
“यार मैं घूमने जा रहा हूँ या किसी युद्ध के मैदान में??? इतनी मानसिक यातनाओं के किस्से तो पाकिस्तान के भी न सुने कभी.”

प्लान बनाया था बाइक ट्रिप का, पर एक तो बाइक रेंटल का चलन पूर्वोत्तर (North East) में है नहीं और एक मित्र के रेफरेंस से एक बंदे से बात हुई तो उसने बताया कि मेरे पास फटफटिया (बुलेट) है, लेना चाहें तो वो ले जा सकते हैं. अब सही कहूँ तो फटफटिया को सिर्फ देखा है, मतलब छुआ भी नहीं आज तक तो चलाने की बात तो बहुत दूर रही. बिल्कुल अनजान पहाड़ों पर एक नई बला के साथ, मैं किसी भी प्रकार के परीक्षण के मूड में नहीं था. साथ ही भारी बारिस को देखते हुए बाइक का प्लान कैंसिल करना पड़ा. हाथ वैसे भी अभी भी पूरी तरह से तैयार नहीं किसी विकट परिस्थितियों में बाइक को घसीटने के लिए.

इसी बीच एक मित्र ने ठहरने का इतजाम करने का जिम्मा ले लिया. मतलब होटल जो भी सस्ते से सस्ता हो सकता और मेरी सरकारी स्टाम्प पर शिलांग में गेस्ट हाउस के इंतजाम का फंडा अंत समय में उन्होंने ही बताया, तो यह भी परेशानी खत्म. बस निकलने के लिए बैकपैक तैयार थी. अब तो इंतजार था अपने निकलने के दिन और समय का. साथ में हल्का-फुल्का खाने का कुछ सामान जो माँ हमेशा तैयार करती रही हैं, श्रीमतिजी ने साथ मिलकर तैयार कर दिया- बिहार का पसंदीदा लंबे समय तक खराब न होने वाला ठेकुआ, आटे के कुछ नमकीन, फ्राई चूड़ा, सत्तू. ये उस डर की वजह से भी था, जिसमें कुछ मित्रों ने कहा कि आप वहाँ से मटन-चिकन खा के ही लौटेंगे. तो ये बिहारी पोटली उसी के बैकअप के लिए आईसीयू की तरह थी. दो बैकपैकर मेघालय की खूबसूरती को अपनी आँखों से देखने और वहाँ की ताजगी को रूह से महसुस करने के लिए तैयार थे.

सच कहूँ तो कुछ अंतरद्वंद भी चल रहे थे, कैसे होंगे वहाँ के लोग? कुछ ज्ञानियों की कहानियों से ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी एलियन प्लेनेट पर जाने की तैयारी कर रहा हूँ. कभी लगता घर से घर नौ दिन का कार्यक्रम कुछ ज्यादा ही लंबा तो नहीं कर लिया मैंने, अगर सच में खाने-पीने को सिर्फ मटन-चिकन मिला तो? बजट बैकपैकर के हिसाब से बल्कुल ही लो रखी थी, क्या पूर्वोत्तर में यह फार्मुला सफल हो पायेगा? कई और भी प्रश्न दिल और दिमाग को उलझाये थे. खैर, जब ठान लिया तो जाना ही था…

आगे अगले भाग में…

“तब तक स्वस्थ रहिए, मस्त रहिए
मानसिक यायावरी करते रहिए मेरे साथ …”

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23 thoughts on “मेरी पूर्वोत्तर यात्रा : मेरे सपनों का प्रदेश मेघालय – My North East Visit : My Dream Destination Meghalaya”

    1. आशीष जी,
      आभार ब्लॉग पर आने और अपना समय देने के लिए. बने रहिए आगे अपनी यात्रा के सभी पहलुओं से रूबरू करवाऊंगा.

  1. शुरुआत काफी अच्छी रही क्योंकि डर के आगे ही जीत है

    1. आभार दिनेश माथुर जी,

      आगे बने रहिए, जल्द ही दूसरी किस्त भी लिख डालूँगा. आपलोगों से उत्साहवर्धन से आगे बढ़ने की शक्ति मिलती है, प्यार बनाए रखिए.
      ब्लॉग पर आने और समय डेकर पढ़ने के लिए आभार.

  2. Fantastic write up ?? बहुत मस्त लिखा। एक बार फिर मेरी अपनी मेघालय यात्रा जीवंत हो आई।
    लिखते रहें।

    1. सुनीता जी,
      आपकी वजह से ही यह यात्रा इस रूप में कर पाया, वरना मैं तो बरसात खत्म होने का इतंजार कर रहा था.
      आपके मार्गदर्शन और अनुभव की वजह से मेघालय को मेघालय की तरह देख पाया. बारिस की बूंदें, मेघों का साम्राज्य, कोहरा और ठण्ड शायद न मिलता मुझे नवंबर में. फिर से आभार आपकी सुझाव के लिए.

  3. बढ़िया यात्रा विवरण अंशुमन भाई….. एक अनजान और दूरस्थ स्थल पर जाते समय अपनी कल्पना शक्ति से काफी कुछ सोच लेते है …. कुछ लोग बताते है तो कुछ लोग खोज लेते है …. हर जगह का अपना खान पान होता है सो इन स्थलों का भी है .. वैसे शाकाहारी के के लिए बहुत से विकल्प हर जगह मिल ही जाते है …फल और सलाद तो हर जगह मिल ही जाते है …. वैसे ढूढने पर शाकाहारी भोजन भी मिल जाता है आपको भी जरुर मिला होगा…….

    1. रितेश भाई जी,
      धन्यवाद ब्लॉग तक आने और पढकर अपना कीमती कमेन्ट देने के लिए.
      North East तो वैसे ही एक अनजाना और अनछुआ सा रहा है. भोजन से बारे में आगे के किस्तों में जानकारी देता रहूँगा.
      हाँ, जहाँ विकल्प न मिले वहाँ फल-कंदमूल तो होते ही हैं. बस थोड़ी जुगत लगनी पड़ती है.

  4. प्रकृति के मोहपाश में बंध..
    चल दिये रोमांच की तलाश में..
    वो घुमक्कड़ी क्या रुकेगी..
    थकान नहीं यायावर की हर साँस मे..
    चल पडा़ है, ये #खानाबदोश भी साथ अब तेरे..
    इक नई यायावरी की तलाश में..

    1. बिरेन्द्र भाई,

      बहुत सुंदर उदगार. “एक नई यायावरी की तलाश में” कितना सच कहा आपने, हम यायावर थकते कहाँ है… एक के बाद दूसरी… फिर तीसरी…. फिर चौथी…. यात्रा चलती रहती है अनवरत, जैसे न थकने की कसम ही खा ली हो हमने.

      शामिल यात्रा में हो न सके, मानसिक यायावरी में आपको अपनी आँखों से देखा मेघों के देश या मेघों की रानी का निखरे रूप के दर्शन कराने का प्रयास करूँगा.

    1. जी मिलना तो यही था, पर देर होने का कारण कंप्युटर का डेटा lost होना है. सारे पोस्ट और फोटो चले गए भाई. देर की वजह यही है.

    1. Renuka,

      Meghalaya is really wonderful, it was like Alice in Wonderland for me. It was mine amazing trip. Will visit again, there are many spot remain to explore.

      Thanks for coming & reading. Please advice to improve my writing & content, if any.

  5. उम्दा वृत्तांत। हम भी पूर्णतः शाकाहारी हैं और बच्चों के साथ 2013 में ये यात्रा की थी तब भी कोई समस्या नहीं थी.

    1. धन्यवाद जयश्री जी,
      सच कहा आपने मुझे भी कहीं कोई कमी मिली नहीं शाकाहारी भोजन की.
      ज्यादातर बातें अफवाह ही निकली, जो थोथी कल्पना थी.

    1. फिर से शायद बरसातों में वहाँ होऊ. वहाँ देखने और explore करने को बहुत कुछ है, जिसे चार पांच दिनों और एक ट्रिप में करना शायद मुश्किल है.

  6. रोमांच अभी बढ़ना शुरू ही हुआ था कि आपने ब्रेक लगा दिया

    1. रोमांच बनाये रखिये, पोस्ट लंबी हो चली इसलिए ब्रेक लेना पड़ा. जल्द अगली किस्त में फिर रोमांचक सफर पर चलेंगे.

  7. Wow अंशुमन…
    आज समय निकाल पाई थोड़ा।क्या लिखा है.. मस्त..?
    मैं कब लिख पाऊँगी ऐसा।

    मन कर रहा अब मेघालय चली जाऊँ…??

    1. धन्यवाद ज्योति जी,
      लिख क्या पाता हूँ, बस कोशिश कर रहा हूँ की अपने अनुभव को सहेज सकूँ और इससे औरों को सहायता भी मिल जाये.
      आप तो क्या सुपर फ़ास्ट लिखती हैं. मेरे तरह ना ही लिखे तो बेहतर है ज्योति जी, देख रहे हैं… सितम्बर में की गई यात्रा के संस्मरणों को फरवरी में पूरा नहीं कर पाया. नैनीताल भी अभी अटका पड़ा है. मेरी लेखनी बहुत धीमी है… लिखने का मूड महीने में एक – दो दिन ही बन पाता है.

      मेघालय है ही ऐसा… तभी तो ये मेरे बचपन से सपने में था… जो इस मेघालय यात्रा में पूर्ण हुआ. इसी वजह से इसका शीर्षक भी मेरे सपनों का प्रदेश मेघालय रखा.
      मेघालय फिर से खिंच रहा है मुझे अपनी ओर. जाऊंगा फिर से….

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