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मेरी पूर्वोत्तर यात्रा: भागलपुर से गुवाहाटी ट्रेन यात्रा – My North East Visit: Bhagalpur to Guwahati Train Journey

मेरी पूर्वोत्तर यात्रा : मेरे सपनों का प्रदेश मेघालय – भाग 2

पिताश्री की कविता की वजह से खासी हिल्स से मानसिक जुड़ाव बचपन से था. खासी हिल्स के सौंदर्य को निहारने की बचपन से ही इच्छा थी. मेघालय मेरे लिए ऐलिस इन वंडरलैंड यानि एक जादुई दुनिया की तरह सम्मोहित करने वाला एक सुन्दर प्रदेश था. मेरे सपनों का प्रदेश मेघालय की यात्रा वृतांत को शुरू से पढने के लिए यहाँ जाएँ : मेरी पूर्वोत्तर यात्रा : मेरे सपनों का प्रदेश मेघालय

कई सारे अंतरद्वन्दों के साथ मेघालय यात्रा पर निकलने का समय भी आ गया. मुरली कृष्णा बेगुसराय, बिहार से दोपहर को मेरे घर भागलपुर पहुँच गए. खाने-पीने के साथ मेघालय यात्रा पर अंतहीन बातचीत का दौड़ चलता रहा. ब्रह्मपुत्र मेल, जिससे हमें भागलपुर से गुवाहाटी जाना था, का भागलपुर पहुँचने का समय संध्या 7:45 बजे है. ट्रेन लेट होने की वजह से रात्रि 9 बजे तक आने की सम्भावना थी. रात्रि भोजन (डिनर) के बाद हमने अपना बैकपैक उठाया, खाने-पीने के सामग्री की वजह से मेरा बैकपैक भारी हो चला था. मुरली कृष्णा, जिसे हम आगे मुरली के नाम से संबोधित करेंगे, बिलकुल ही छोटा सा, हल्का बैग कंधे पर डाले 8:30 बजे घर से निकलने को तैयार हुए. जैसे ही चलने को हुए दोनों नन्हें कुमार की आँखे नम होकर छलक पड़ी. दादी ने समझाया पापा जल्दी आ जाएंगे, रोते नहीं.

छोटे कुमार ने मासूमियत से आँसूं टपकाते हुए कहा-
“पापा हमलोग को तो हमेशा लेकर जाते हैं न?

तो मेघालय क्यों नहीं ले जा रहे, दादी….?
मुझे भी वॉटरफॉल देखना है, मुझे भी हिल पर चढ़ना है.
वॉटरफॉल अच्छा लगता है न दादी, मुझे भी जाना है.”

बड़े कुमार भी रो-रोकर बेहाल थे. किसी तरह दोनों को समझाया, आपके स्कूल की छुट्टियाँ होगी तो आपको भी लेकर चलेंगे बेटा. देखो दादी और मम्मी भी आपके साथ घर पर ही रहेगीं. भारी मन से घर से बाहर निकला, रास्ते में बच्चों की नम आँखे और रोते चेहरे सामने आ रहे थे. बोझिल मन से स्टेशन तक पहुंचा. आधे घंटे इंतजार करने के बाद 9:15 बजे ट्रेन सरकती हुई प्लेटफ़ॉर्म पर आई और हमलोग अपने आरक्षित स्लीपर डब्बे में चढ़कर अपने बर्थ पर बिस्तर लगाकर सोने का इतंजाम करने लगे. मुरली बिना चादर बिछाये ही लेट लिए, पूछने पर पता चला जनाब न तो बिछाने और न ढकने की चादर लेकर आएं हैं. वाह, क्या नायब तरीका अपनाया बैग को हलके रखने का, कुछ लेकर ही न चले.

ट्रेन में अपेक्षा से कम ही भीड़ थी और कई बर्थ खाली पड़े थे. मालूम नहीं कहा से मन ने एक उलझा हुआ प्रश्न खोज लिया और उलझा रहा काफी समय तक. बार-बार यही विचार मन में आता-

“आखिर North East को हिन्दी में पूर्वोत्तर क्यों कहते हैं? उत्तर पूर्व क्यों नहीं?
या फिर अंग्रेजी में ही इसे East North क्यों नहीं कहते?”

अब इसका सटीक जवाब मुझे तो मालूम नहीं, पर जिसका जवाब न मिले उसमें मन उलझता भी अधिक समय तक है. यही सब सोचते और मेघालय जाने की खुशी से, मन उन्मुक्त परिदें की तरह ऊँची उडान भर रहा था. ट्रेन की खटर-पटर बिलकुल ऐसी लग रही थी जैसे लोरी सुनाकर सुला रही हो. लोरी सुनते-सुनते कब नींद आ गई कुछ पता न चला. रात्रि में कुछ खास न हुआ, जैसा कि हमेशा होता है बीच-बीच में नींद खुलती रही.

Bhagalpur to Guwahati Train Journey

सुबह आँख खुली तो मोबाइल निकालकर ट्रेन का रनिंग स्टेटस देखा तो पता चला न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन आने वाली है. अब ट्रेन में सुबह-सुबह उठने का मतलब ही होता है जंगल-पानी की इमर्जेंसी. नहीं तो लोग उठते कहाँ हैं जल्दी, पड़े रहते हैं ऊँघते – अनमने से. मेरी आदत भी सुबह उठकर सबसे पहले पानी पीने और फिर निपटने की है. सोचा उठकर जल्दी निपट लूँ, स्टेशन आने पर थोडा बाहर का चक्कर लगाया जाएगा. यही सोच लैबोरेट्री (रेलवे कोच के वाशरूम / टॉयलेट / बाथरूम जो भी आप कहते हैं, रेलवे की भाषा में उसे लैबोरेट्री कहा जाता है) की ओर बढ़ा. एक, फिर दूसरा डब्बा, फिर तीसरा डब्बा, फिर चौथा करते करते स्लीपर डब्बे ही समाप्त हो गए. सुबह-सुबह जो नर्क के दर्शन हुए, उसका वर्णन करना भी दुष्कर है. एक तो लंबी दूरी की ट्रेन और दूसरा मेरा स्लीपर कोच से सामना भी लगभग एक दशक के बाद ही हो रहा है. मोदी जी ने ट्रेन में बायो टॉयलेट तो लगवा दिये, इसमें लोगों को धोना भी सिखाना पड़ेगा. पेपर सोप, नैपकिन, समाचार पत्र, पैडस के साथ बोतल भी उसी बायो टॉयलेट में घुसेड़े दे रहे हैं और नतीजा वही जो होना है – टॉयलेट जाम. ऐसे में लैबोरेट्री में घुसने की हिम्मत तो कोई हिम्मत वाला ही कर सकता है और हम ऐसे हिम्मत वाले नहीं, जो अपनी हिम्मत रेलवे की लैबोरेट्री में दिखाएँ. आखिर में जुगाड़ लगाई, जंगल-पानी निपटाई. तब तक ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी के प्लेटफोर्म पर पहुँच गई. फिर से दार्जीलिंग और सिक्किम यात्रा की याद ताजा हो आई, स्टेशन पर उतरकर चहलकदमी करते आसपास मुआयना किया. प्लेटफ़ॉर्म बिलकुल चकाचक, स्वस्छ भारत अभियान का स्पष्ट परिणाम दिख रहा था. हर डब्बे के लैबोरेट्री में सफाईकर्मियों ने आकर सफाई कर दी और लैबोरेट्री फिर से चकाचक होकर महक उठा. ट्रेन लगभग बीस मिनट रुकने के बाद फिर से चल पड़ी.

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आसाम में कहीं

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मुरली तो मुरलीवाले की तरह ही निराले निकले. वो ट्रेन में जंगल-पानी जाने को तैयार ही न हुए, मतलब पूरा कोटा वो रिजर्व लेकर चलने वाले थे. मैं तो ना सुनकर ही हैरान हो लिया, वो भी तब जब लैबोरेट्री चकाचक होकर खुशबु से महक रहा हो. खैर, मुरली को जंगल-पानी जाना नहीं था और जंगल-पानी के बाद मेरे पेट में चूहे कबड्डी खेलना शुरू कर चुके थे. श्रीमतीजी की प्यार से बांधी गठरी निकाली. उसमें से निकला सफ़र में मेरी पसंदीदा मस्त बिहारी खाद्य सत्तू पराठा और लहसुन का अचार…

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सत्तू पराठा और लहसुन का अचार
आपको इसका लजीज स्वाद चखा तो नहीं सकता, आप बस देख लो.

हमने तीन-तीन सत्तू पराठे को निपटा दिया. थोड़ी देर में ही मुरली फिर झपकी मारने लगे तो मैं भी अपनी सीट पर लेट फेसबुक स्टेटस चेक करने लगा. तभी कोलकता की एक ट्रेवलर मित्र सुनीताजी ने सन्देश भेजा- “आपकी ट्रेन जिस जगह से गुजरने वाली है, वहाँ बेहतरीन व्यू और नज़ारे आने वाले हैं. कैमरा तैयार रखियेगा.” मैं असमंजस में, आखिर सुनीताजी को हमारी ट्रेन दिख कैसे गई भाई ? झट से कैमरा और फोन लेकर ठीक वैसे ही तैयार हो गया, जैसे किसी हमले की आशंका में सेना का जवान अपनी बन्दुक तानकर खड़ा हो जाता है. आधे घंटे तक तो कुछ खास नजर नहीं आया, पर अचानक से जैसे हम किसी अद्भुत दुनिया में पहुँच गए. नज़ारे वालपेपर की तरह खुबसुरत और आश्चर्यचकित करने वाले, आने लगे. ट्रेन सरपट भागी जा रही थी, आसाम के चाय बागन के साथ अनानास के खुबसुरत खेती अद्भुत लग रहे थे और साथ ही लम्बे और घने बांस के जंगल (जिसे हमारे यहाँ बांसबिट्टी कहते हैं, पता नहीं आसाम में क्या कहते हैं) भी दिख रहे थे. बादल जैसे अठखेलियाँ करते बिलकुल जमीं को गले लगाने को आतुर हो. कई बार तो लगा जैसे ये यायावर बादल, ट्रेन की खिड़की से अन्दर ही दाखिल हो जायेंगे. अपने कैमरे से खचाखच फोटो लेता रहा, पर ट्रेन की तेज रफ्तार की वजह से चंद फोटो ही ढंग के ले पाया. मन प्रसन्न हो गया और अपने आभासी दुनिया के घुमक्कड़ मित्र सुनीताजी को दिल से धन्यवाद कहा, जो समय रहते सूचना दे दी.

Incredible Assam
Incredible Assam….
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Incredible Assam
Incredible Assam
What a view…
Incredible Assam
Incredible Assam
Clouds resting on Earth…

पूरा दिन यूँ ही खिडकियों से नजारों को निहारते बीत गया. दुबारा न मुझे झपकी आई और न ही मुरली को नींद. दोपहर को फिर से बचे हुए पराठे और आचार से पेट पूजा की गई. ट्रेन लेट हो चली थी. दिन के ढाई बजे पहुँचने वाली ट्रेन, अब हमें 5 – 5:30 बजे तक ही गुवाहाटी पहुँचाने वाली थी. ट्रेन के लेट होने से हम कैसे कामख्या मंदिर में माँ के दर्शन कर पाएंगे, इस पर विचार कर रहे थे. आखिर वही हुआ जो पहले ही अंदेशा था. ट्रेन लगभग 5:30 बजे कामख्या स्टेशन पहुंची.

कामाख्या स्टेशन पर ट्रेन के रुकते ही बैगपैक उठाकर बाहर की ओर चल पड़े. कामाख्या स्टेशन बाहर से देखने पर मंदिर होने का आभास दे रहा था. थोड़ी देर स्टेशन को निहारता रहा. फिर एक रिक्सा लिया और चल दिये अपने होटल की ओर, जहाँ पहले ही दो बेड, मित्र से बुक करवा रखा था. ट्रेन पहुंचने के पहले उनसे बात कर होटल का पता और लोकेशन ले चुका था. ट्रेन विलंब से पहुंची थी, थोड़ी देर में अंधेरा होने को था और करने को कुछ था भी नहीं. तो फ्रेश होकर मंदिर घूम आना ही बेहतर विकल्प लगा.

दोनों थोड़ी देर में मालेगाँव के होटल के कमरे में थे, जो किसी मंदिर के द्वारा संचालित थी. कमरे में सात बेड लगे थे, दो बेड पर पहले ही दो बंगाली मानुष बीड़ी या सिगरेट, जो भी हो फूंक रहे थे. कमरा धुंआ-धुंआ हो रहा था. हम अपने बेड के पास वाली खिड़की खोल बिस्तर पर पड़ गए. थोड़ी देर में ही धुएँ से दम घुटने लगा. हमें कामाख्या मंदिर भी जाना था, तो झटपट फ्रेश होने बाथरूम का रुख किया.

पर मुरली तो मुरलीवाले की तरह ही निराले निकले. अब तक बैठे थे, मुझे देखते ही भुनभुनाने लगे- “ये कोई रहने की जगह है, कोई बढ़िया होटल लेना था. हमलोग दो दिन कैसे रहेगे इस घटिया से डॉरमेट्री में?”

मैंने समझाया भाई एक तो इस टूर को बैगपैकर की तरह करने की इच्छा और दूसरा पॉकेट का भी ध्यान रखना. इन दो वजहों से ये डॉरमेट्री बुक कारवाई और पहले ही सारी बातों से अवगत भी करा दिया था. बजट आपकी भी परेशानी है, पर मुरली जी नाक-मुँह बनाते तर्क-वितर्क करते रहे- बाल्टी गंदा है. प्राइवेसी नहीं है. सफाई ठीक नहीं है. उससे भी बड़ी समस्या टॉयलेट और बाथरूम एक साथ इस छोटे से जगह में ही है, नहीं चलेगा. थोड़ी देर बहस चलने के बाद, फिर अनमने ढंग से फ्रेश हुए. मैं तो पहले ही तैयार बैठा इंतजार कर रहा था, फिर देर किस बात की, तेजी से बाहर निकल पड़ा, आखिर मुरली के सवालों से भी बचना था, जो दिमाग का दही कर रहे थे. रास्ते में सोच रहा था, सालों पहले मैं भी ऐसा ही था. पर लम्बे समय तक बाहर रहने और घुमक्कड़ी के नशे ने आखिर हर हाल में जीना सीखा दिया. 

शेष अगले भाग में…

“तब तक स्वस्थ रहिए, मस्त रहिए
मानसिक यायावरी करते रहिए मेरे साथ …”

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