पहाड़ियों की रानी दार्जिलिंग की सैर
सुबह 4 बजे ब्रह्म मुहूर्त में ही उठकर टाइगर हिल को निकल पड़े । बाहर का तापमान 11° डिग्री सेल्सियस था, शायद रात में अच्छी बारिस हुई थी । गाड़ी हमने होटल से ही बुक करवा रखा था । टाइगर हिल दार्जिलिंग आने वाले पर्यटकों और सैलानीयों के लिये एक प्रमुख आकर्षण होता है, जैसा हमें बताया गया और काफी कुछ इसके बारे में सुन भी रखा था । दार्जिलिंग में शेयर टैक्सी भी चलती है, पर टाइगर हिल जाने के लिये गाड़ी बुक करने के अतिरिक्त कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है । टाइगर हिल को छोड़ बाकी की जगह शेयर टैक्सी से आराम से घुमा जा सकता है दार्जिलिंग में, शेयर टैक्सी माल रोड़ से लगभग 1 किलोमीटर दुर नीचे ओल्ड सुपर मार्केट में उपलब्ध होती है | हाँ, थोड़ी देर इंतजार करना पड़ सकता है लाइन में, पर सस्ते में घूमने के लिए बुरा नहीं है |
हमलोग गाड़ी से उतरते ही, कमान से छूटे तीर की तरह टाइगर हिल की तरफ बच्चों को खींचते-घसीटते भागे । सांसे फुलने लगी, गाड़ियों के जमावड़े की वजह से हमें लगभग 1 किलोमीटर पैदल चढ़ाई करनी पड़ी । इतनी जल्दी, जैसे हमें कोई छूटती ट्रेन पकड़नी हो । गिरते-पड़ते हम टाइगर हिल पहुंचे, पर बादलों ने हमारे अरमानों पर पानी फेर दिया । पूरी पर्वत श्रृंखलाओं को घने बादलों ने अपने आगोश में ले रखा था । बादल लुका-छिपी का खेल खेल रहे रहे थे, जैसे हमें मुंह चिढ़ा रहें हों । सूर्योदय को देखने आये लोग आखिर बोर हो सेल्फी लेने लगे | बेचारे कितने तो निंद्रा देवी को नाराज कर जिन्दगी में पहली बार ही इतनी सुबह निंद्रा देवी की अलसाई बाहुपास से छुटकर टाइगर हिल आये होंगे | कुछ देर आसपास के नज़ारों को निहारने के बाद देखा तो भगवान भास्कर उदीयमान होते नज़र तो आये, लेकिन बादलों के वजह से हमें कंचनजंगा की सोने-सी दमकती पर्वत श्रृंखलाओं के दीदार न हो सका । जैसा कि मैंने फोटो में कई बार देखा था, चमकती-दमकती कंचन काया धारण किये कंचनजंगा कि पर्वत श्रृंखलाएं । जैसे हमें लुभा रही हो, बुला रही हो – “आओ आ जाओ आ भी जाओ “।
पर मुझे तो टाइगर हिल की सूर्योदय में कुछ भी खास नहीं लग रहा था । या तो हम मौसम के मारे रहें हो या फिर इसे कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर प्रचारित किया गया हो । वहाँ कुछ स्थानीय महिलाएँ कॉफ़ी बेचती दिखीं । सबने सुबह के कॉफ़ी की चुस्की टाइगर हिल पर ली । मैंने उस महिला से साफ-साफ दिखने वाले और सोने से दमकते कंचनजंगा के बारे में पूछा तो उस महिला ने बताया कि एक महीने से Sun Rising ठीक से हुआ ही नहीं है । सैकड़ों लोग हर रोज आते हैं और निराश और हताश होकर लौटते हैं ।
खैर, जो भी हो मायूसी के साथ खिन्न मन, सुस्त और लापरवाह कदमों से हम लौट रहे थे वापस । सैकड़ों खड़ी गाड़ियों में अपनी गाड़ी ढूंढ निकालना भी एक बड़ी बात है या यूं कहें एक पज़ल सुलझाने जैसा ही है । हमलोग काफी देर गाड़ियों की रेलमपेल में फंसे रहे |
वापस लौटते हुये हरी-भरी वादियों और नीचे घाटियों में दूर तक फैले अल्पाइन के घने जंगलों को निहारता रहा । हर दिन होती बारिस की वजह से पेड़ो के तने पर हरी काय नजर आ रही थी । ड्राइवर से बातचीत से पता चला कि यहाँ बारिस कभी भी शुरू हो जाती है । दिन में एक-दो बार बारिस हो जाना बिल्कुल सामान्य सी बात है ।
पेट पूजा के लिये हमें अभी होटल जाना था और फिर तैयार होकर साइट्स सीइंग के लिये निकलना था । पर घूम स्टेशन के आगे निकलते ही रास्ते में बतासिया लूप और युद्ध स्मारक, जिसमें बतासिया इको गार्डन भी है, नज़र आ गया तो हमने यहाँ घूम लेने की सोची और वही गाड़ी रूकवाई और चल दिये । ये जगह माल से 5 किलोमीटर की दूरी पर है । यहाँ बोर्ड पर खुलने और बंद होने का समय सुबह 5 बजे से रात्रि के 8 बजे लिखा था, टिकट प्रति व्यक्ति 15 रुपये ।
बतासिया लूप, दार्जिलिंग रेलवे इंजिनियरिंग का एक बेहतरीन नमूना है, यहाँ टॉय ट्रेन हेयरपिन टर्न लेती है, बिल्कुल 360° डिग्री पर । बतासिया लूप में ही युद्ध स्मारक का निर्माण आजादी से पहले स्वतंत्रता संघर्ष और विभिन्न लड़ाइयों में मारे गये गोरखा सैनिकों को श्रद्धांजली देने के लिए सन् 1995 में किया गया । यहाँ टेलीस्कोप से कंचनजंघा पर्वत श्रृंखला का विहंगम नजारा देखने को मिल सकता है अगर आसमान साफ हो । जो कि हमारी किस्मत में नहीं था । फिर भी ऊँचाई पर होने की वजह से दार्जिलिंग शहर का खूबसूरत नज़ारा तो दिख रहा था ।
![]() |
फोटो गूगल बाबा से साभार |
यहाँ से निकलते ही अगला पड़ाव था- “ईगा चोएलिंग मठ या घूम मठ”। घूम मठ पश्चिम-बंगाल में सबसे पुराने और सबसे बड़े तिब्बती बौद्ध मठ में से एक है । यहाँ भगवान बुद्ध की 15 फीट ऊँची प्रतिमा स्थापित है । जहाँ तक मैंने समझा, यहाँ क्लास रूम बने थे । शायद बौद्ध धर्म की शिक्षा-दीक्षा होती हो यहाँ । एक-दो छोटे बच्चों को विशेष तरह के पांडुलिपियों से कुछ मंत्र पढ़ते देखा, जो एक नलीनुमा बक्से में सहेजकर रखते हैं ।
ऊपर पहुँच आसपास निरक्षण करने लगा, मठ में भी अद्भुत नज़ारा दिखाई दे रहा था । मठ में सुबह-सुबह प्रार्थना चल रही थी । हमें बिना बातचीत और फोटोग्राफी न करने की हिदायत के साथ परिक्रमा की अनुमति मिली । वहाँ कतारों में बैठे बौद्ध एक साथ मंत्र जाप कर रहे थे और कुछ अद्भुत वाद्ययंत्रो से निकली तन-मन को कंम्पित करती ध्वनि तरंगें जैसे आत्मा को भी झंकृत कर रही थी । वातावरण बिल्कुल निर्मल और पवित्र था, यहाँ की सुबह बिल्कुल अलग ही महसूस हो रही थी ।
मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं ध्यान की अवस्था में चला जा रहा हूँ । अगर मैं अकेला होता तो शायद वहीं पद्मासन लगाकर ध्यान लगा लेता । पर मैं दो बच्चों को लेकर परिक्रमा कर रहा रहा था और वो भी मंत्रोचारण और प्रार्थना कर रहे बोद्धों के बीचों-बीच। अद्भूत अनुभव था, शायद मेरे जैसे नौसिखिए के लिये उस अनुभव को शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है ।
बाहर भगवान बुद्ध की छोटी-सी प्रतिमा थी, जिसपर दर्शन के लिए आये या घूमने-फिरने वाले जलाभिषेक कर रहे थे । वहाँ मौजूद एक युवा बौद्ध भिक्षु एक-एक को बिल्कुल शांत होकर इशारों में समझा रहे थे, जलाभिषेक कैसे करना है । सबको यहाँ आकर अच्छा लगा । खासकर मेरे बड़े बेटे को वाद्ययंत्र कुछ खास पसन्द है, वो उन्हें बस ठोकने-पीटने को मिल जाये | यहाँ तो बिल्कुल नये तरह के वाद्ययंत्रों को देख काफी खुश और उत्साहित था |
यहां से निकल, होटल पहुंचते-पहुंचते 10 बज गये । बच्चों की भी तारीफ करनी पड़ेगी, टाइगर हिल से निकले तो उनलोगों को बिस्किटस और छोटा जूस का पैकेट दिया गया था, पर किसी ने भूख लगने की शिकायत अभी तक नहीं की थी । होटल पहुंच कर सबने नाश्ता किया, पर ये हमारे लिये सुबह का नाश्ता और लंच दोनों ही था । क्योंकि हम लौटकर वापस होटल खाने को नहीं आने वाले थे ।
तैयार होकर हम 11 बजे फिर से निकले । हमारा अगला पड़ाव था, पद्मजा नायडू हिमालयन प्राणी उद्यान एवं हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान। दार्जिलिंग प्राणी उद्यान देश के बाकी अन्य प्राणी उद्यानों से अलग है, यहां आप कुछ हिम जंतुओं को सुबह 8:30 बजे से संध्या 4 बजे तक देख सकते हैं । टिकट 60 रूपये प्रति व्यक्ति है, कैमरे के लिये 10 रूपये का टिकट लेना होगा |
दार्जिलिंग प्राणी उद्यान 67.56 एकड़ में फैला और 7000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है । यहां लाल पांडा, हिमतेंदुए, हिमभालू, तिब्बती भेड़िया और पूर्वी हिमालय के अन्य अत्यधिक लुप्तप्राय जानवरों की प्रजातियों को देखा जा सकता है । मेरे बच्चों के पास पैरों से चलाने वाली एक गाड़ी है, जिसमें पांडा की बनावट है । इस वजह से मेरे दोनों बच्चों को लाल पांडा सबसे ज्यादा पसंद आई और दोनों उसे घर ले चलने की ज़िद करने लगे । वाकई, देखने में बहुत ही सुन्दर था, खुद मैंने भी इसे पहली बार ही देखा था । हिमभालू नाच -नाचकर पर्यटकों को लुभा रहा था | ये हिमभालू सबके आकर्षण का केंद्र बना हुआ था, बच्चे तालियाँ बजाते और भालू और नाचता | प्राणी उद्यान की ऊंची-ऊंची चढ़ाई की वजह से बच्चे थक चुके थे और बिल्कुल भी चलने को तैयार नहीं थे |आखिर उनकी जिद माननी पड़ी और हम हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, जो अन्दर ही है,के पास थोड़ी देर बैठ कर लौट गये | हिमालयन जैविक उद्यान बर्फीले प्रदेश में रहने वाले तेंदुओं और लाल पांडा के प्रजनन कार्यक्रम के लिए प्रसिद्ध है |
यहां पर्वतारोहण स्किल जांचने के लिये 50 रुपये का टिकिट लेकर दीवाल में बने छोटे-छोटे गुटकों की मदद से ऊपर चढ़ सकते हैं, सुरक्षा के लिये बेल्ट और रस्सों से बांध कर ही चढ़ने दिया जाता है । लौटते समय हमने हिम तेंदुए, तिब्बती भेड़िया, याक के साथ बंगाल टाइगर देखा जो अब तक के देखे टाइगर में सबसे बड़ा था । बिल्कुल नजदीक आने की वजह से एकबारगी तो मेरी सांसे अटक गयी, कितना लम्बा और बड़ा सा टाइगर था ।
हम अभी बाहर निकल ही रहे थे कि मौसम ने रूप बदलना शुरू कर दिया, चारों ओर अचानक से धुंध छाने लगा । थोड़ी दूर आगे भी दिखाई नहीं दे रहा था, पर जब पूरी तरह से घनीभूत हो गये, तब हमें समझ आया कि ये उमड़ते-घुमड़ते बादल हैं । बादल हमारे साथ-साथ चल रहे थे, या यूं कहें हम बादल की ऊंचाई तक पहुंच गये थे । हमलोगों की गाड़ी काफी नीचे पार्किंग में खड़ी थी । नीचे से आती गाड़ियों के लिये नो एंट्री का समय हो चुका था । बाहर मेवों, मसालों, कपड़ों, सजावट सामग्री के साथ-साथ मोमोस, मैगी, चाय, ब्रेड-आमलेट, पकोड़ों की छोटे-छोटे स्टॉल लगे थे । सबने चाय-पकोड़ों का ऑर्डर दिया ही था कि मूसलाधार बारिस शुरू हो गयी । बिल्कुल ठंडी-ठंडी जमा देने वाली बारिस का पानी । खाने-पीने वाली स्टाल के छोटी से जगह में महिलाओं और बच्चों ने शरण ली, मैं बारिस का मजा बगल में चनाचूर वाले के छज्जी में मसालेदार चनाचूर के साथ ले रहा था । इस बारिस में मैंने एक बात नोटिस की और वो थी यहां के बड़े-बड़े छाते । यहां के छातों का आकार सामान्य छातों से काफी बड़ा था, ये शायद इसलिए होगा ताकि तेज बारिस में भी रूकावट ना आये । जैसा कि सुबह ही ड्राइवर से जानकारी मिली थी कि बारिस होगी या नहीं ये बता पाना नामुमकिन है। खिली धूप थी जब हम प्राणी उद्यान में घूम रहे थे और 10 मिनट में ही मूसलाधार बारिस होने लगी । यहाँ हमें लगभर 40-45 मिनट इंतज़ार करना पड़ा, बारिस रुकने पर हम अपनी गाड़ी तक पहुंचे और फिर निकल पड़े चाय बागान की ओर |
बारिस फिर शुरू हो गई, हमें हैप्पी वैली चाय बगान और तिब्बत रिफ्यूजी सेल्फ हेल्प सेंटर जाना था । यूं तो दार्जलिंग में करीबन 86 चाय के बागन है लेकिन हैप्पी वेली चाय बागन में हम चाय बनने की प्रक्रिया को भी देख सकते हैं । चाय बगान पहुंचे तो, पर बाहर लगे स्टॉल पर चाय का स्वाद लेकर, कुछ चाय श्रीमतीजी जी ने भी ली और दुर तक फैले हरियाली और सीढ़ीनुमा चाय के खूबसूरत बगानों का बस मुआयना कर ही गाड़ी में वापस आना पड़ा । बारिस तेज हो चली थी, हम बारिस के ठंडे-ठंडे पानी में गीले होने के मूड में बिल्कुल भी नहीं थे ।
तिब्बत रिफ्यूजी सेल्फ हेल्प सेंटर आज शायद बंद था, बौद्धों का कुछ खास त्योहार था । जैसा ड्राइवर ने बताया, तभी सुबह बौद्ध मन्दिर में विशेष प्रार्थना चल रही थी । तेनजिंग HMI घूमबु रॉक पहुंचे, पर गाड़ी में ही दुबके रहे । किया भी क्या जाये, थोड़ी देर गाड़ी खड़ी कर इंतज़ार करने के बाद हम रॉक गार्डन एंड गंगा माया पार्क की ओर चल दिये । रास्ते में शहर के बाहर बेहद दिल को मोह लेने वाला नजारा था, कई बार मन किया गाड़ी से उतरकर एक-आध फोटो ले लूँ, पर आती-जाती गाड़ियों और स्कूल की छुट्टी का समय होने की वजह से ये हो न सका | पर एक खाली जगह पर ड्राईवर महोदय से विनती कर गाड़ी रुकवाई और स्तब्ध करने वाले मंजर को निहारता रह गया | थोड़ी देर में ड्राईवर ने आवाज लगाई, तब एहसास हुआ फोटो लेना तो भूल ही गया |
रॉक गार्डन की भी दिलचस्प कहानी हैं | 1980 के दशक में, गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) का आंदोलन दार्जिलिंग हिल्स में पूरी तरह से फैला हुआ था । जिसकी वजह से पर्यटकों का दार्जिलिंग जाना ही बन्द हो गया और दार्जिलिंग का नाम एक पर्यटक स्थल में बिल्कुल भुला दिया गया | जिसकी वजह से यहाँ की अर्थव्यवस्था बिल्कुल चरमरा गई | 1988 में दार्जिलिंग गोरखा स्वायत्त हिल काउंसिल (डीजीएएचसी) की स्थापना के साथ धीरे-धीरे शांति लौटी, चूंकि चाय और पर्यटन ही दार्जलिंग की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था, इसलिए डीजीएएचसी ने पर्यटकों को दार्जिलिंग में वापस लाने के प्रयासों की शुरुआत की ।
जिसके तहत रॉक गार्डन एंड गंगा माया पार्क का निर्माण किया गया । रॉक गार्डन हिल कार्ट रोड से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है और जैसा हमारे ड्राईवर ने बताया हम लगभग 4200 फीट निचे जा रहे थे | सड़कों की हालत अच्छी नहीं थी, उबड़-खाबड़ रास्ते बिल्कुल शार्प कट लिये हुये मुड रहे थे और हम बहुत तेजी से निचे की ओर जा रहे थे | सिर्फ 30 मिनट में ही हम 4200 फीट निचे थे, ये भी मेरे लिये एक अजूबा ही था | हम दिलकस नजारों का लुत्फ़ लेते हुये निचे पहुंचे, यहाँ भी पर्यटकों की भीड़ का अंदाजा पार्किंग और सड़कों पर खड़े वाहनों से लग रहा था | टिकट (20 रूपये प्रति व्यक्ति ) लेकर हम फिर से ऊपर की ओर चढ़ने लगे |
यहाँ दुर से ही बहुत ही खुबसूरत झरना दिख रहा था | बहते हुये प्राकृतिक झरने को सजा-सवांर कर बेहतरीन पिकनिक स्पॉट का रूप दे दिया गया हैं | जगह-जगह बैठने का सुंदर इंतजाम | बच्चे ना-नुकुर करते कभी बैठते, कभी और आगे ना जाने की हठ करते | लेकिन जब कल-कल कलरब करता निर्मल और स्वच्छ बहता झरने का पानी उन्हें नज़र आया तो फिर बस पुछेये मत | सबको मस्ती चढ़ गयी और खुशी से भागे, दौड़े, नाचे और खुद में ही मस्त हो गये | कितने निश्चल और वर्तमान में जीते हैं ये बच्चे | जो अभी और आगे नहीं जाना चाहते थे अब जिद कर रहे थे- और ऊपर, और ऊपर और ऊपर |
एक जगह झरना बेहद ही खूबसूरती से निचे आ रहा था, हम वहीँ ठहर गये | ऊपर अभी काफी चढाई बाकी थी, पर यहाँ से आगे कोई जा नहीं रहा था | मन तो किया बिल्कुल टॉप पर जाऊ | पर समय मुझे इसकी इजाजत नहीं दे रहा था, संध्या के 5 बज रहे थे, लगभग आधे घंटे में ही अँधेरा होने वाला था | वहीँ बैठ अनवरत कलरव करते और बेपरवाह बहते झरने का आनन्द लेने लगे | ये आज का आखरी पड़ाव था, संध्या में माल और उसके आसपास घूमने का भी अपना ही मजा है, पर ये अब होने से रहा | हमारे पहुचने से पहले ही दार्जिलिंग संध्या के 6 बजे ही बिल्कुल शांत हो जाने वाला था , ये भी बड़ी अजीब बिडंबना ही है | खैर, कोई इसमें कर भी क्या सकता हैं, बस आप जब भी जाये तैयार हो कर जायें | दार्जिलिंग की मार्केट संध्या 6 बजे ही बन्द होती है, ये तो बिल्कुल भी ना भूलें |
दार्जीलिंग की सैर के दौरान लिये गए अन्य फोटो →
आगे अगले किस्त में …
इसे भी पढ़े:
- दार्जिलिंग कैसे पहुँचे (How to reach Darjeeling)
- सिक्किम कैसे पहुँचे (How to reach Gangtok, Sikkim)
- दार्जलिंग और सिक्किम यात्रा – भाग 1
- दार्जलिंग और सिक्किम यात्रा – भाग 2
- दार्जलिंग और सिक्किम यात्रा – भाग 3
- दार्जलिंग और सिक्किम यात्रा – भाग 4
- दार्जलिंग और सिक्किम यात्रा – भाग 5
- दार्जलिंग और सिक्किम यात्रा – भाग 6
- दार्जलिंग और सिक्किम यात्रा – भाग 7
(Visited 643 times, 1 visits today)
Nice blog, giving me vivid experience as if I am also travelling along while I read this. well narrated, mesmerizing pictures along the scenic beauty of this Himalayan treasure. I wish to thank you, and good luck, keep moving and sharing your experience.
Thank you so much for your encouraging words and for being a good reader. I am pleased that you really enjoyed reading my articles. I am blandished knowing that my blog brightens your day and its worth your appreciation.
पिछले भाग की तरह ये भाग भी बहुत जोरदार लिखा आपने। फोटो बहुत अच्छे आए हैं। और वो आराम फरमाता तेंदुआ आराम कर रहा है या चिंतामग्न है एक बार पूछना पड़ेगा इससे। यहां की रेलगाड़ी के लिए सुना है कि अब महंगी होने वाली है, अब इसमें एसी लगने वाला है फिर ये अमीरों के लिए हो जाएगा, हम जैसे तो दूर से ही छुक छुक करते हुए जाते हुए देख लेंगे।
एक सुझाव अगर सभी फोटो में कैप्शन दे दें तो और ज्यादा मजेदार हो जाए।
धन्यवाद अभयानंद भाई फिर से पढ़ने के लिए | फोटो आपके लिए फोटो के सामने कुछ नहीं, नौसिखिया हूँ अभी आपसे अभी गुढ़ ज्ञान लेना है फोटोग्राफी का | आप तो चाँद भी पकड़ लेते हैं | तेंदुआ महाराज से आप ही बतिया सकते हैं, हमारी तो हिम्मत नहीं कुछ भी पूछने की | रेलगाड़ी में हमलोग भी कहाँ चढ़ पाये | एक तो समय का आभाव और दुसरा सारा टिकट पहले ही लुट चुका था | एक टिकट 1200 और स्टीम इंजन वाले ट्रेन का 1800 थे, हमारी हिम्मत नहीं हुई चढ़ने की सोचने की | गर्मियों में दार्जलिंग किसी मेले जैसा आभास दे रहा था | कैप्शन वाले सुझाव का आगे से ध्यान रखूँगा |
दिसंबर के आखिरी सप्ताह में मैं भी दार्जिलिंग गंगतोक गौहाटी Shillong की यात्रा पर निकलूंगा यह जानकारियां मेरे काम आएंगी । अच्छा वर्णन किया है आपने।
अनुराग जी, ब्लॉग पर आने और पढ़ने के लिए धन्यवाद | उम्मीद करता हूँ जानकारी आपके कुछ काम आएगी | दिसंबर में दार्जलिंग, गंगटोक का अलग ही लुत्फ़ देंगे | उम्मीद करता हूँ आपकी यात्रा मंगलमय होगी |
Absolutely fantastic writeup… Pics are so lively.
Keep rockingg us…
Thanks for come on blog and read my posts dear. It's my pleasure you love the way I write. I love photography but know nothing about, just point & shoot.
hopefully you will keep visiting in future too & keep increasing.
Thnkx You.
Nice information with real picturization ?
Thanks bro, I tried to put pics as storyline going, if you observe.
Thanks once again for like the post.